बुधवार, 3 जुलाई 2024

कहानी

 मुझको अपने वश कर ले, जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

पतझड़ में रुनझुन, खनके सावन गीत

वर्षा रिमझिम में, विरह तके मनमीत

अक्सर कहते लोग, मुझमें बदगुमानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

करधन में लगा है उसका ही जपगांठ

बहुत छुपाया लग न जाए, कोई आंख

सांस गहन होती, मगन नमन जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

तन्मय मन उपवन में, दीवानगी जतन

क्यों जिंदगी गुनगुनाती होती ना सहन

जीवन दे दीवानगी व्योम धरा मनजानी

गालियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी।

 

धीरेन्द्र सिंह

03.07.2024

06.18



सोमवार, 1 जुलाई 2024

कविताएं

 पीड़ा है बीड़ा है कैसी यह क्रीड़ा है

मन बावरा हो करता बस हुंकार

पास हो कि दूर हो तुम जरूर हो

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार

 

अगन की दहन में आत्मिक मनन

प्रेमभाव वृष्टि फुहारों में कर जतन

जीव सबका एक सबपर है अधिकार

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार

 

चाह की आह में प्रणय आत्मदाह

डूबन निरंतर पता न चले थाह

एक लगन वेदिका दूजा मंत्रोच्चार

कविताएं अकुलाई कर लो न प्यार।

 

धीरेन्द्र सिंह

02.07.2024

07.11

हिंदी-उर्दू

 हिंदी एक भाषा एक सभ्यता एक संस्कृति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

भाषा का विकास, विन्यास, अभ्यास जरूरी

विभिन्न हिंदी साहित्य इसकी हैं तिजोरी

विश्व चयनित श्रेष्ठ संस्कृत भाषा से उन्नति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

विपुल हिंदी साहित्य इसकी श्रेष्ठता प्रमाणित

अब भी क्यों कहें सौंदर्य हिंदी उर्दू आधारित

फारसी के शब्दों से हिंदी ही कहें उर्दू गति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति

 

हिंदी फिल्मों के गीत या उनके हों संवाद

उर्दू भाषा ज्ञानी लिखें हिंदी का ले ठाट

सूफी साहित्य हिंदी गहि साहित्य संप्रति

उर्दू हिंदी श्रृंगार भला इससे कैसे सहमति।

 

धीरेन्द्र सिंह

01,.07.2024

15.31



रविवार, 30 जून 2024

दर्द

 यह नहीं कि दर्द मुझ तक आता नहीं

दर्द की अनुभूतियों का मैं ज्ञाता नहीं

शिव संस्कृति का अनुयायी मन बना

काली के आशीष बिन दिन जाता नहीं

 

संस्कृति और संस्कार यदि संतुलित हो

सहबद्धता प्रतिबद्धता विजाता नहीं

गरलपान, मधुपान, जलपान आदि कहें

मातृशक्ति के बिना कुछ भाता नहीं

 

अनेक नीलकंठ अचर्चित असाधारण हैं

काली के रूप में सक्रिय विज्ञाता कहीं

सहन की शक्ति भी दमन ऊर्जा सजाए

दर्द एक मार्गदर्शी दर्द यूं बुझाता नहीं।

 

धीरेन्द्र सिंह

30.06.2024

16.37



शुक्रवार, 28 जून 2024

भीड़

 कैसी यह मंडली कैसा यह कारवां

भीड़ की बस रंग डाली-डाली है

रौद्र और रुदन से होता है जतन

उलाहने बहुत कि निगाहें सवाली हैं

 

क्या करेगी भीड़ व्यक्तियों की मगर

अगर हृदय चेतना बवंडर सवाली है

वर्षा जल सींच रहे पौधे किनारों के

कौन अजनबी कह रहा वह माली है

 

भीड़ एक शोर है मंडली तो गलचौर है

साजिंदे एकल हैं संगीत की रखवाली है

धुनों में, सुरों में, बेसुरा का काम क्या

थाप नए गीत की भाव नव हरियाली है।

 

धीरेन्द्र सिंह

29.06.2024

10.21



बहार

 हृदय की अनुभूतियों में कोमल सा छन्न

धन्य उस अनुभूति का एकाकार हो गया

भावनाएं उत्सवी उल्लास में हंगामा करें

धड़कनें आतिशबाजी सी कहें प्यार हो गया

 

ऑनलाइन लाइक करती यही उनका धूप

डीपी का चेहरा अनुरागी कहांर हो गया

मेरी प्रत्येक पोस्ट पर आगमन हो उनका

देखते ही देखते मन खोल द्वार खो गया

 

ऐसी भी हो रही हैं अब रचित कद्रदानियां

प्रणयवादियों में नवीन अविष्कार हो गया

प्यार तो अंतर्मन की पुलकित फुलवारी है

वह समझें ना समझें जीवन बहार हो गया।

 

धीरेन्द्र सिंह

29.06.2024

07.59



कैसी आवाज है

 हर मौसम का अपना ही मिज़ाज है

हर मोहल्ले का अपना ही समाज है

अनेकता में एकता की है बुनियाद

लोग कहने लगे कि यह राजकाज है


तर्क के गलीचे पर शब्दों के गुलदान

सजावटी परिवेश में होता कलआज है

आश्वासनों में भुलावे का चलन है

अभिलाषाओं की तलहटी में राज है


हर बंद दरवाजे में निजता का राग है

द्वार घंटी लिए अलग-अलग साज है

किवाड़ खोलिए कि अंदर जज्बात भरे

भ्रमित, शमित, रचित कैसी आवाज है।


धीरेन्द्र सिंह

29.06.2024

07.24