मुझे शब्द की एक काठी बनाकर
कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर
कहता था अक्सर शब्द ही ब्रह्म है
शब्द में हों अभिव्यक्त प्रथम कर्म है
चलते बने वह चाह साथी बनाकर
कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर
उपेक्षित सा पड़ा है न वह प्रतीक्षित
लाठी तो संकट में लगती है दीक्षित
क्या मिला उन्हें संग वादी गंवाकर
कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर
ठक-ठक की आवाज से था संवाद
स्व रक्षा का है यह साथी निर्विवाद
एक दिन अस्वीकारा बकबाती बताकर
कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर।
धीरेन्द्र सिंह
14.06.2024
10.18