गुरुवार, 13 जून 2024

लाठी बनाकर

 मुझे शब्द की एक काठी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


कहता था अक्सर शब्द ही ब्रह्म है

शब्द में हों अभिव्यक्त प्रथम कर्म है

चलते बने वह चाह साथी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


उपेक्षित सा पड़ा है न वह प्रतीक्षित

लाठी तो संकट में लगती है दीक्षित

क्या मिला उन्हें संग वादी गंवाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


ठक-ठक की आवाज से था संवाद

स्व रक्षा का है यह साथी निर्विवाद

एक दिन अस्वीकारा बकबाती बताकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2024

10.18

दमित भावनाएं

 बलवती हो रही हैं निज भावनाएं

एक आप कर रहीं दमित कामनाएं


एक अकुलाहट में निहित बुलाहट

एक मनआहट में विस्मित कबाहट

संशय तोड़ उभरतीं संभावित पताकाएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


संस्कार का शीतधार वेग है अपार

प्रेम है आपका बस संयमित दुलार

बांध तोड़कर उफनने को आमादा धाराएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


ओ साधिका साध दी छवि जीवन

ओ वामिका आंच दी रचि सीवन

धारित जीवन निहित कई वर्जनाएं

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं


चार दशक बाद न रहा उत्साही चषक

क्या निज उपवन है गया कहीं धसक

आपकी शैली में आतुर शमित सर्जनाएँ

एक आप कर रहीं दमित भावनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2024

09.17



आतुर थाली

ज्योतिष कह रहा कोई आनेवाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

अनुभूतियां नियुक्तियां मधु तरंग करें

रिक्तियां मुक्तियाँ लखि प्रबंध करें

नयन प्रतिबद्धता ने राह खंगाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

आगत के स्वागत का नव वृंदगान है

पलकों के गलीचे का कोमल विज्ञान है

अधर शब्द पुष्पगुच्छ सांसें ताली हैं

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है

 

किस योग्यता का न्यौता मन ब्यौता

किस भव्यता से हृदय को हृदय सौंपा

अक्षत, मिष्ठान, दीप ले आतुर थाली है

तब से कल्पनाओं की जारी जुगाली है।

 

धीरेन्द्र सिंह

12.06.2024

22.43