आज नूतन नव किरण है, तुम कहां
मैं हूं डूबा इक गज़ल में, गुम जहां
कल जो बीता वह ना छूटा राग से
अब भी अनुराग, अभिनव कहकशां
सूर्य रश्मि पीताम्बरी में लिपट धाए
दौड़ता है मन यह आतुर बदगुमां
प्रीति उत्सव संग तरंग, नर्तन करे उमंग
गीत जो बस गए, गुनगुनाए यह ज़ुबां
कौन सी कोंपल नई, उभरी है अबकी
एक शबनम मचल रही, हो मेहरबां
एक संभावना संग, सपने नए मचल उठे
यथार्थ को चरितार्थ करें, मिलकर यहां.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
एक दिन
ऑखें ठगी सी रह गईं
क्या आज कुछ कह गईं
परिधान की नव प्रतिध्वनियॉ
तन सम्मान की सरगर्मियॉ
शबनम भी आज पिघल गई
भोर बावरी सी मचल गई
मुख भाव की यह अठखेलियॉ
मुखरित सौंदर्य की पहेलियॉ
पुरवैया क्या यह कह गई
भावनाएं लग रही नई-नई
कुछ भी ना है अब दरमियॉ
भावना की पंखुड़ीली नर्मियॉ.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
चॉद,चूल्हा
चॉद, चूल्हा और चौका,चाकर
क्या पाया है इसको पाकर
खून-पसीना मिश्रित ऑगन में
लगती है वह अधजल गागर
रूप की धूप में स्नेहिल रिश्ते
चले वहीं जहॉ चले हैं रस्ते
घर की देहरी डांक चली तो
लगता घर आया वैभव सागर
चाह सुगंध की चतुर सहेली
गॉवों, कस्बों की अजब पहेली
शहरी नारी की चमक की मारी
करती संघर्ष जो मिला है पाकर
नारी गाथाओं की यह अलबेली
खिली, अधखिली पर है चमेली
सृजनधर्मिता आदत है जिसकी
इनकी भी सुध ले कोई आकर.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
क्या पाया है इसको पाकर
खून-पसीना मिश्रित ऑगन में
लगती है वह अधजल गागर
रूप की धूप में स्नेहिल रिश्ते
चले वहीं जहॉ चले हैं रस्ते
घर की देहरी डांक चली तो
लगता घर आया वैभव सागर
चाह सुगंध की चतुर सहेली
गॉवों, कस्बों की अजब पहेली
शहरी नारी की चमक की मारी
करती संघर्ष जो मिला है पाकर
नारी गाथाओं की यह अलबेली
खिली, अधखिली पर है चमेली
सृजनधर्मिता आदत है जिसकी
इनकी भी सुध ले कोई आकर.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
बाजारवाद-बहाववाद
ज़िंदगी हर हाल में बहकने लगी
कठिन दौर हंस कर सहने लगी
मासिक किश्तों में दबी हुई मगर
कभी चमकने तो खनकने लगी
बाजारवाद में हर दर्द की दवा हाज़िर
बहाववाद ले तिनके सा बहने लगी
क्रेडिट कार्ड करे पूरी तमन्नाएं अब
ज़िंदगी हंसने लगी तो सजने लगी
सूर्य सा प्रखर रोब-दाब-आब सा
चांदनी भी संग अब थिरकने लगी
लोन से लिपट आह, वाह बने
कभी संभलने तो बहकने लगी
तनाव, त्रासदी से ऊंची हुई तृष्णा
दिखावे में ढल ज़िंदगी बिकने लगी
रबड़ सा खिंच रहा इंसान अब
ज़िंदगी दहकने तो तड़पने लगी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
कठिन दौर हंस कर सहने लगी
मासिक किश्तों में दबी हुई मगर
कभी चमकने तो खनकने लगी
बाजारवाद में हर दर्द की दवा हाज़िर
बहाववाद ले तिनके सा बहने लगी
क्रेडिट कार्ड करे पूरी तमन्नाएं अब
ज़िंदगी हंसने लगी तो सजने लगी
सूर्य सा प्रखर रोब-दाब-आब सा
चांदनी भी संग अब थिरकने लगी
लोन से लिपट आह, वाह बने
कभी संभलने तो बहकने लगी
तनाव, त्रासदी से ऊंची हुई तृष्णा
दिखावे में ढल ज़िंदगी बिकने लगी
रबड़ सा खिंच रहा इंसान अब
ज़िंदगी दहकने तो तड़पने लगी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
प्याज़
नए सफर की ओर चली
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज
हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज
ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज
मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज
हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज
ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज
मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
रविवार, 19 दिसंबर 2010
मन चिहुंका
शब्दों को होठों से भींचकर
भावना की सीपी को मींचकर
कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं
बात-बेबात नाराज़गी की रीत हुई
धड़कनों से धड़कनों को खींचकर
चितवन से उपवन को सींचकर
गीत की अठखेलियॉ मन-मीत हुईं
लहरों से लहरों की जीत हुई
आहट से मन को मीत कर
बासंती सरगम की प्रतीत कर
बिरहन राधा सी पीर हुई
चाहत यमुना की तीर हुई
अकुलाहट को पार्श्व में खींचकर
राहत को आहत से जीतकर
मन तरंग रसमयी झंकार हुई
मन चिहुंका फिर वही टंकार हुई.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
भावना की सीपी को मींचकर
कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं
बात-बेबात नाराज़गी की रीत हुई
धड़कनों से धड़कनों को खींचकर
चितवन से उपवन को सींचकर
गीत की अठखेलियॉ मन-मीत हुईं
लहरों से लहरों की जीत हुई
आहट से मन को मीत कर
बासंती सरगम की प्रतीत कर
बिरहन राधा सी पीर हुई
चाहत यमुना की तीर हुई
अकुलाहट को पार्श्व में खींचकर
राहत को आहत से जीतकर
मन तरंग रसमयी झंकार हुई
मन चिहुंका फिर वही टंकार हुई.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बुधवार, 15 दिसंबर 2010
रूसवाई
आज शबनम भी उबलने लगी है
रोशनी भी बर्फ सी लगने लगी है
इस सुबह का खो गया आफताब
सांसो में आह सी चलने लगी है
ज़िंदगी रूसवा हुई पग खोल गई
बंदगी घुटनों पर मचलने लगी है
सूना-सूना खोया-खोया मंज़र हुआ
तरन्नुम भी अब बहकने लगी है
आपकी इनायत की है दरख्वास्त
धड़कनें भी अब तड़पने लगी हैं
बमुश्किल ज़िंदगी से हुआ था सामना
अब यह कैसी हवा चलने लगी है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
रोशनी भी बर्फ सी लगने लगी है
इस सुबह का खो गया आफताब
सांसो में आह सी चलने लगी है
ज़िंदगी रूसवा हुई पग खोल गई
बंदगी घुटनों पर मचलने लगी है
सूना-सूना खोया-खोया मंज़र हुआ
तरन्नुम भी अब बहकने लगी है
आपकी इनायत की है दरख्वास्त
धड़कनें भी अब तड़पने लगी हैं
बमुश्किल ज़िंदगी से हुआ था सामना
अब यह कैसी हवा चलने लगी है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
आप जैसे पढ़नेवालों संग
गुम होकर गुलिस्तॉ में छुप जाना चाहिए
लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए
करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या
पुरवट सा खुशियों को अब बहाना चाहिए
नित नई चुनौतियों में संघर्ष,हार-जीत है
निज़ता को बांटकर अजब तराना चाहिए
एक मुस्कराहट से मिले दिल की हर आहट
घबराहट समेटकर संग खिल जाना चाहिए
मन की उमंग पर तरंग हो ना फीकी कभी
आप जैसे पढ़नेवालों संग जुड़ जाना चाहिए.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
लेकर नई खुश्बू रोज़ गुनगुनाना चाहिए
करवट बदलती ज़िदगी कब कर जाए क्या
पुरवट सा खुशियों को अब बहाना चाहिए
नित नई चुनौतियों में संघर्ष,हार-जीत है
निज़ता को बांटकर अजब तराना चाहिए
एक मुस्कराहट से मिले दिल की हर आहट
घबराहट समेटकर संग खिल जाना चाहिए
मन की उमंग पर तरंग हो ना फीकी कभी
आप जैसे पढ़नेवालों संग जुड़ जाना चाहिए.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
मिल रहे हैं द्रोन
कौन है सम्पूर्ण और अपूर्ण कौन
सागर की लहरें मंथर पहाड़ मौन
ज़िंदगी के वलय में एकरूपता कहॉ
तलाशते जीवन में मिल रहे हैं द्रोन
एकलव्यी चेतनाएं अप्रासंगिक बनीं
दरबारियों के विचार हैं तिकोन
अब मुखौटा देखकर लगती मुहर
हर नए हुजूम को बनाती पौन
लक्ष्य के संधान की विवेचनाएं
देगा परिणाम अब बढ़कर कौन.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
क्यों इतनी दूर हो गईं
अर्चनाएँ अब एक दस्तूर हो गई
खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई;
खुशियाँ हक़ीकत की नूर हो गई;
इंतज़ार अब तपती धरती सा लगे
बदलियॉ ना जाने क्यों मगरूर हो गई
एक आकर्षण सहज या कि बेबसी महज़
असहजता ज़िंदगी का सुरूर हो गई
एक तपन की त्रासदी की चेतना संग
बारिशों की खातिर जमीं मज़बूर हो गई
क्या यही प्रारब्ध मेरा बन गया है
निस्तब्धता भी लगे गरूर हो गई
कामनाएं पुष्प की देहरी ना चढ़े
आराधनाएं अटककर हुजूर हो गई
चाह के आमंत्रण की अविरल गुहार
राह की रहबर तो चश्मेबद्दूर हो गई
सांत्वनाएं अर्थ अपना छोड़ने लगी हैं
आप मुझसे क्यों इतनी दूर हो गईं.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
मुलाकात नहीं होती है
अब कहीं और कोई बात नहीं होती है
भ्रमर-फूलों में अब सौगात नहीं होती है
भावनाएं भी प्रदूषित हो रहीं उन्माद के तीरे
धड़कनों की शर्मीली मुलाकात नहीं होती है
मिले और जुड़ गए मानों पुराना रिश्ता हो
तेज जीवन में अनुराग का क्यों बस्ता हो
प्रलोभन से घिरे मन में बरसात नहीं होती है
निगाहों में छुपाए शाम मुलाकात नहीं होती है
कभी गीतों में ढलकर नई धुन बन जाएं
सांस की तारों पर शबनमों को सजाएं
दो हृदयों में अब पदचाप नहीं होती है
अब मंदिर के बहाने मुलाकात नहीं होती है
प्रौद्योगिकी में है डूब रहा कोमल स्पंदन
प्रगति, उपलब्धि में दमित मानवीय वंदन
यंत्रवत काम में दिलबात नहीं होती है
चांदनी भी ठिठके यह मुलाकात नहीं होती है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
भ्रमर-फूलों में अब सौगात नहीं होती है
भावनाएं भी प्रदूषित हो रहीं उन्माद के तीरे
धड़कनों की शर्मीली मुलाकात नहीं होती है
मिले और जुड़ गए मानों पुराना रिश्ता हो
तेज जीवन में अनुराग का क्यों बस्ता हो
प्रलोभन से घिरे मन में बरसात नहीं होती है
निगाहों में छुपाए शाम मुलाकात नहीं होती है
कभी गीतों में ढलकर नई धुन बन जाएं
सांस की तारों पर शबनमों को सजाएं
दो हृदयों में अब पदचाप नहीं होती है
अब मंदिर के बहाने मुलाकात नहीं होती है
प्रौद्योगिकी में है डूब रहा कोमल स्पंदन
प्रगति, उपलब्धि में दमित मानवीय वंदन
यंत्रवत काम में दिलबात नहीं होती है
चांदनी भी ठिठके यह मुलाकात नहीं होती है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
एक शाम
शाम की तलहटी में, आहटों का सवेरा है
डूबते सूरज की मूरत में, छिपा वही चितेरा है
शाम की ज़ुल्फें खुली, हवा भी बौराई है
धड़कनें बहकने लगी, चाहत लगे लुटेरा है
दिनभर की थकन, एक अबूझा सा दहन
हल्की-हल्की सी चुभन, सबने आ घेरा है
कदम भी तेज चले, नयनों में दीप जले
लिपट लूं ख्वाहिशों से, वह सिर्फ मेरा है
ज़िंदगी भागती तो लड़खड़ाती, दौड़ रही
अपने पल, अपने मन की, मधुमय रेखा है
सिमट लूं संग उनके, पल दो पल चुराकर
आज की बात करूं, कल किसने देखा है.
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
गुंईया बन गए हम
अभी भी सलवटें सुना रहीं हैं दास्तान
मौसम ने ली थकन भरी अंगड़ाई है
चादर में लिपटी देह गंध भी बुलंद है
एक अगन हौले से गगन उतर आई है
मन के द्वार पर है बुनावट सजी रंगीली
समा यह बहकने को फिर बौराई है
खनकती चूड़ियों में प्रीत की रीत सजी
उड़ते चादर में सांसो की ऋतु छाई है.
एक अनुभव में ज़िन्दगी, बन्दगी सी लगे
शबनमी आब है, मधु बनी तरूणाई है
छलकते सम्मान में निज़ता का आसमान है
चादर पर पसरी रोशनी फिर खिलखिलाई है.
इस चादर में हमारे गागर के हिलोरे हैं
कुछ अपने हैं कुछ सुनामी दे पाई है
बांटने से गुनगुनाए ज़िन्दगी की धूप
गुंईया बन गए हम यह बोले तरूणाई है.
मौसम ने ली थकन भरी अंगड़ाई है
चादर में लिपटी देह गंध भी बुलंद है
एक अगन हौले से गगन उतर आई है
मन के द्वार पर है बुनावट सजी रंगीली
समा यह बहकने को फिर बौराई है
खनकती चूड़ियों में प्रीत की रीत सजी
उड़ते चादर में सांसो की ऋतु छाई है.
एक अनुभव में ज़िन्दगी, बन्दगी सी लगे
शबनमी आब है, मधु बनी तरूणाई है
छलकते सम्मान में निज़ता का आसमान है
चादर पर पसरी रोशनी फिर खिलखिलाई है.
इस चादर में हमारे गागर के हिलोरे हैं
कुछ अपने हैं कुछ सुनामी दे पाई है
बांटने से गुनगुनाए ज़िन्दगी की धूप
गुंईया बन गए हम यह बोले तरूणाई है.
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
शब्दों से छलके शहद
शब्दों से छलके शहद फिर हद कहॉ
वेदना तब गेंद सी लुढ़कती जाए
एक छाया बाधाओं को नापती पग से चढ़े
एक सिहरन हंसती नस में उछलती जाए
भावों के आलोड़न में निहित झंकार है
शब्दों की अलगनी पर बूंदे मटकती जाएं
ताल, लय पर नृत्य करता यह मन बावरा
जैसे हरी दूबों से परती एक भरती जाए
दो नयन मुग्धित मगन हो रसपान करें
होंठों पर स्मिति से वेदना को छीना जाए
सावनी फ़िजाएं आएं जब मिलो तुम झूम के
शब्द से लिपट यह मन निरंतर भींगा जाए.
वेदना तब गेंद सी लुढ़कती जाए
एक छाया बाधाओं को नापती पग से चढ़े
एक सिहरन हंसती नस में उछलती जाए
भावों के आलोड़न में निहित झंकार है
शब्दों की अलगनी पर बूंदे मटकती जाएं
ताल, लय पर नृत्य करता यह मन बावरा
जैसे हरी दूबों से परती एक भरती जाए
दो नयन मुग्धित मगन हो रसपान करें
होंठों पर स्मिति से वेदना को छीना जाए
सावनी फ़िजाएं आएं जब मिलो तुम झूम के
शब्द से लिपट यह मन निरंतर भींगा जाए.
सोमवार, 29 नवंबर 2010
हम ढूंढते हैं खुद को
कब-कब लगी है आग, दिल की दुकान में
बोल रही हैं चिपकी राख, मन के मचान में.
पहले जब था तन्हा तो, थी तनहाई की जलन
मनमीत की तलाश में, थी मिश्री जबान में.
कब वो मिले, कब मिले-जुले, खबर ना लगी
टूटता है बन्धन भी, दिल के सम्मान में.
रेत पर अब भी हैं गहरी, हमसाथ की लकीरें
चाहत चमकती रहती है, मौसमी तूफान में.
तब भी कहा गया नहीं, अब भी ना बोल निकले
हम ढूँढते हैं ख़ुद को, ख़ुद के ही अरमान में.
रविवार, 28 नवंबर 2010
मेंहदी
खिल-खिल हथेलियों पर, मेहँदी खिलखिलाए रे
अपनी सुंदरता पर, प्रीत बिछी जाए रे,
कुहक रही सखियॉ सब, कोयलिया की तान सी
हिय में नया जोश भरा, छलक-छलक जाए रे
मेहँदी सब देखे, सब जाने-बूझे बतिया
अँखियन के बगियन में, सपन दे सजाए रे
ऐसी निगोड़ी बनी, छोरी छमक सखियॉ सब
साजन का नाम ले, हिया दे बहकाय रे
अधरों पर सजने लगे, सावनिया गान सब
सॉवरिया सजन अगन, दिया दहकाय रे,
बरसा की बूंदे भी, छन-छन कर उड़ जाए
बदन के ऑगन में, नया राग बजा जाए रे.
अपनी सुंदरता पर, प्रीत बिछी जाए रे,
कुहक रही सखियॉ सब, कोयलिया की तान सी
हिय में नया जोश भरा, छलक-छलक जाए रे
मेहँदी सब देखे, सब जाने-बूझे बतिया
अँखियन के बगियन में, सपन दे सजाए रे
ऐसी निगोड़ी बनी, छोरी छमक सखियॉ सब
साजन का नाम ले, हिया दे बहकाय रे
अधरों पर सजने लगे, सावनिया गान सब
सॉवरिया सजन अगन, दिया दहकाय रे,
बरसा की बूंदे भी, छन-छन कर उड़ जाए
बदन के ऑगन में, नया राग बजा जाए रे.
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
हुस्न की साजिश
एक हुस्न की साजिश है
एक अदा की है रवानगी
सब कुछ निखर रहा है
दे दी क्या यह दीवानगी
अपनी डगर की मस्तियों में
बिखरी रहती थी चॉदनी
तारों में अटके ख्वाब कुछ
घुलती रहती थी रागिनी
अब कहॉ गया है दिल
कहॉ गई वह सादगी
किसकी राह तके ऑखें
पसरी हुई बस बेचारगी
शोला लपक गया यकायक
खिलने लगी है बेखुदी
अब हुस्न का दरिया बसेरा
और चाहत भरी आवारागी
एक अदा की है रवानगी
सब कुछ निखर रहा है
दे दी क्या यह दीवानगी
अपनी डगर की मस्तियों में
बिखरी रहती थी चॉदनी
तारों में अटके ख्वाब कुछ
घुलती रहती थी रागिनी
अब कहॉ गया है दिल
कहॉ गई वह सादगी
किसकी राह तके ऑखें
पसरी हुई बस बेचारगी
शोला लपक गया यकायक
खिलने लगी है बेखुदी
अब हुस्न का दरिया बसेरा
और चाहत भरी आवारागी
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
विवाहेतर सब्ज बाग
जब भी मिलतें हैं, होती हैं सिर्फ बातें
एक दूजे से हम खुद को छुपाते हैं
घर गृहस्थी की हो जाती है चर्चा
ना वह रुकते ना हम कह पाते हैं
जीवन के मध्य में भी ऐसा होता है
हम उन्हें बुलाएं वह मुझे सताते हैं
एक पीपल में बांध आई डोर सुना
तब से हम रोज जल वहां चढ़ाते हैं
एक आकर्षण खींच रहा क्यों मुझको
क्यों विवाहेतर सब्ज बाग हम बनाते हैं
जब दिखी लौ पतिंगा सी बेबसी पाया
लिख कविता पतिंगे सा गति पाते हैं
फिर सुबह होते ही वह उभर आते हैं
कभी गंभीर दिखें, कभी मुस्कराते हैं
बेबसी दिल की जो समझे वही जाने
जिंदगी युग्म है और भावों के फ़साने हैं.
एक दूजे से हम खुद को छुपाते हैं
घर गृहस्थी की हो जाती है चर्चा
ना वह रुकते ना हम कह पाते हैं
जीवन के मध्य में भी ऐसा होता है
हम उन्हें बुलाएं वह मुझे सताते हैं
एक पीपल में बांध आई डोर सुना
तब से हम रोज जल वहां चढ़ाते हैं
एक आकर्षण खींच रहा क्यों मुझको
क्यों विवाहेतर सब्ज बाग हम बनाते हैं
जब दिखी लौ पतिंगा सी बेबसी पाया
लिख कविता पतिंगे सा गति पाते हैं
फिर सुबह होते ही वह उभर आते हैं
कभी गंभीर दिखें, कभी मुस्कराते हैं
बेबसी दिल की जो समझे वही जाने
जिंदगी युग्म है और भावों के फ़साने हैं.
बुधवार, 24 नवंबर 2010
जब से मिला हूं...
जब से मिला हूँ आपसे, रूमानियत छा गई है
खामोशी भाने लगी है, इंसानियत आ गई है.
खयालों में, निगाहों में, चलीं रिमझिमी फुहारें
वही बातें, वही अदाऍ, रवानियत भा गई है.
धड़कनों में समाई है, खनकती गुफ्तगू अपनी
खयालों में उलझी सी, एक कहानी आ गई है.
बहुत मुश्किल है अब और, छुपाना दिल में
मेरे अंदाज़ में आपकी, जिंदगानी छा गई है.
आपका अलहदा नूर, करे मदहोश चूर-चूर
खुद से चला दूर, ऋतु दीवानी बुला गई है.
खामोशी भाने लगी है, इंसानियत आ गई है.
खयालों में, निगाहों में, चलीं रिमझिमी फुहारें
वही बातें, वही अदाऍ, रवानियत भा गई है.
धड़कनों में समाई है, खनकती गुफ्तगू अपनी
खयालों में उलझी सी, एक कहानी आ गई है.
बहुत मुश्किल है अब और, छुपाना दिल में
मेरे अंदाज़ में आपकी, जिंदगानी छा गई है.
आपका अलहदा नूर, करे मदहोश चूर-चूर
खुद से चला दूर, ऋतु दीवानी बुला गई है.
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
चाँद, चौका, चांदनी
चाँद चौके बैठ गया चांदनी लाचार
बेपहर का भोजन यह कैसा अत्याचार
आसमान हलक गया फैलाया अरुणाई
सितारों ने निरखने को बांध ली कतार
चंदा बोला चांदनी मैं हूँ तेरा भरतार
छोड़ न अकेला मुझे भूख के मझधार
आसमान ने बादलों से किया निवेदन
घेरो न चंदा को है यह अनोखा प्यार
चांदनी ने कहा कैसी जिद यह बारम्बार
आप हठीले हो रहे टूट रहा ऐतबार
आसमान मौनता में लिए एक गुबार
चाँद में देखे बांकपन का नया खुमार
चाँद बोला पेट भर कर ले रहे लोग फुफकार
पेट भर कर सोने को मेरा भी जी रहा पुकार
चांदनी में स्वप्न का सज रहा वहां संसार
मैं निसहाय सा न रह सकूं यहाँ लाचार
चांदनी हंस पड़ी सुन चाँद का यह विचार
भूख, चौका, चांदनी, और नींद का इकतार
बैठ चौका में बुनने लगी एक स्वाद नया
चाँद गुमसुम मुस्कराए बाँट अपना प्यार.
बेपहर का भोजन यह कैसा अत्याचार
आसमान हलक गया फैलाया अरुणाई
सितारों ने निरखने को बांध ली कतार
चंदा बोला चांदनी मैं हूँ तेरा भरतार
छोड़ न अकेला मुझे भूख के मझधार
आसमान ने बादलों से किया निवेदन
घेरो न चंदा को है यह अनोखा प्यार
चांदनी ने कहा कैसी जिद यह बारम्बार
आप हठीले हो रहे टूट रहा ऐतबार
आसमान मौनता में लिए एक गुबार
चाँद में देखे बांकपन का नया खुमार
चाँद बोला पेट भर कर ले रहे लोग फुफकार
पेट भर कर सोने को मेरा भी जी रहा पुकार
चांदनी में स्वप्न का सज रहा वहां संसार
मैं निसहाय सा न रह सकूं यहाँ लाचार
चांदनी हंस पड़ी सुन चाँद का यह विचार
भूख, चौका, चांदनी, और नींद का इकतार
बैठ चौका में बुनने लगी एक स्वाद नया
चाँद गुमसुम मुस्कराए बाँट अपना प्यार.
सोमवार, 22 नवंबर 2010
देह देहरी
देह देहरी पर क्यों बैठे बन प्रहरी
पंखुड़ी पर बूंद कुछ पल है ठहरी
अपलक क्यों हैं खुद को थकाईएगा
जड़वत रहेंगे या मन तक जा पाईएगा
कशिश है, तपिश है, सौंदर्य है, सिरमौर है
प्रीति की रीति यहीं मनभावन ठौर है
गुनने-बुनने में क्या दौर यह भगाईएगा
तट तक रहेंगे या मन भर गुनगुनाईएगा
सृष्टि सिमट जाती है अनोखे आगोश में
बेसुध हो जाते हैं आते तो हैं होश में
बेखुदी में आप भी भरम और फैलाईएगा
एक-दूजे को समझेंगे या बरस जाईएगा
वेदना, संवेदना की जागृत यहीं संचेतना
उद्भव, पराभव का स्वीकृत यहीं नटखट मना
देह देहरी पल्लवन में कहॉ तक भटकाईएगा
प्रहरी रहेंगे या फिर मन हो जाईएगा.
पंखुड़ी पर बूंद कुछ पल है ठहरी
अपलक क्यों हैं खुद को थकाईएगा
जड़वत रहेंगे या मन तक जा पाईएगा
कशिश है, तपिश है, सौंदर्य है, सिरमौर है
प्रीति की रीति यहीं मनभावन ठौर है
गुनने-बुनने में क्या दौर यह भगाईएगा
तट तक रहेंगे या मन भर गुनगुनाईएगा
सृष्टि सिमट जाती है अनोखे आगोश में
बेसुध हो जाते हैं आते तो हैं होश में
बेखुदी में आप भी भरम और फैलाईएगा
एक-दूजे को समझेंगे या बरस जाईएगा
वेदना, संवेदना की जागृत यहीं संचेतना
उद्भव, पराभव का स्वीकृत यहीं नटखट मना
देह देहरी पल्लवन में कहॉ तक भटकाईएगा
प्रहरी रहेंगे या फिर मन हो जाईएगा.
रविवार, 21 नवंबर 2010
एक अर्चना निजतम हो तुम
सुंदर से सुंदरतम हो तुम, अभिनव से अभिनवतम हो तुम
आकर्षण का दर्पण हो तुम, शबनम से कोमलतम हो तुम:
ऑखों में वह शक्ति कहॉ जो, सौंदर्य तुम्हारा निरख सके
अप्रतिम मौन लिए मन में, स्नेह-नेह सघनतम हो तुम.
धीरे-धीरे धुनक-तुनक कर,शब्द तुम्हारे धवल, नवल नव
भाव बहाव का सुरभि निभाव, चॉदनी सी शीतलतम हो तुम:
मैं अपलक आतुर अह्लादित, पाकर साथ तुम्हारा निर्मल
तपती धूप की प्यास हूँ मैं, सावनी बदरिया गहनतम तुम.
जीवन जज्बा, किसका किसपर कब, अपनेपन का कब्ज़ा
मुक्त गगन सा खिले चमन सा, एक विहंग उच्चतम हो तुम;
व्यक्ति-व्यक्ति का, मानव भक्ति का, सौंदर्य शक्ति की सदा विजय
रिक्ति-रिक्ति आसक्ति प्रीति की, एक अर्चना निजतम हो तुम.
धीरेन्द्र सिंह.
आकर्षण का दर्पण हो तुम, शबनम से कोमलतम हो तुम:
ऑखों में वह शक्ति कहॉ जो, सौंदर्य तुम्हारा निरख सके
अप्रतिम मौन लिए मन में, स्नेह-नेह सघनतम हो तुम.
धीरे-धीरे धुनक-तुनक कर,शब्द तुम्हारे धवल, नवल नव
भाव बहाव का सुरभि निभाव, चॉदनी सी शीतलतम हो तुम:
मैं अपलक आतुर अह्लादित, पाकर साथ तुम्हारा निर्मल
तपती धूप की प्यास हूँ मैं, सावनी बदरिया गहनतम तुम.
जीवन जज्बा, किसका किसपर कब, अपनेपन का कब्ज़ा
मुक्त गगन सा खिले चमन सा, एक विहंग उच्चतम हो तुम;
व्यक्ति-व्यक्ति का, मानव भक्ति का, सौंदर्य शक्ति की सदा विजय
रिक्ति-रिक्ति आसक्ति प्रीति की, एक अर्चना निजतम हो तुम.
धीरेन्द्र सिंह.
शनिवार, 20 नवंबर 2010
उड़ न चलो
उड़ न चलो संग मन पतंग हो रहा है
देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है
एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम
फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है
आओ चलें समझ लें खुद की हम बातें
कुछ बात है खास या तरंग हो रहा है
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
चलो उडें यहाँ तो बस हुडदंग हो रहा है
मत डरो सन्नाटे में होती हैं सच बातें
मेरी नियत में आज फिर जंग हो रहा है
ऊँचाइयों से सरपट फिसलते खिलखिलाएं हम
देखो न मौसम भी खिला भंग हो रहा है
आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
बिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.
देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है
एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम
फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है
आओ चलें समझ लें खुद की हम बातें
कुछ बात है खास या तरंग हो रहा है
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
चलो उडें यहाँ तो बस हुडदंग हो रहा है
मत डरो सन्नाटे में होती हैं सच बातें
मेरी नियत में आज फिर जंग हो रहा है
ऊँचाइयों से सरपट फिसलते खिलखिलाएं हम
देखो न मौसम भी खिला भंग हो रहा है
आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
बिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
कीजिए सबको साधित
आधुनिकता भव्यता का शीर्ष मचान है
परंपराएं मुहल्ले की लगे एक दुकान है
द्वंद यह सनातनी फैसला रहे सुरक्षित
इसलिए हर मोड़ का निज अभिमान है
सोच का खुलापन लगे विकृत ज्ञान है
अधखुले सत्य का होता सम्मान है
रोशनी के लिए होता पूर्व लक्ष्यित
इतर दिशा दर्शाना महज़ अज्ञान है
संस्कृति कटघरे में फिर भी गुमान है
बस धरोहर पूंजी शेष मिथ्या भान है
ज्ञान कुंठित हो रही प्रगति बाधित
भूल रहे भारत इंडिया मेरी जान है
अपनी-अपनी डफली अपना गान है
चटख रही धूरी दिखता आसमान है
आप उठिए कीजिए सबको साधित
भारत का गौरव लिए स्वाभिमान है.
परंपराएं मुहल्ले की लगे एक दुकान है
द्वंद यह सनातनी फैसला रहे सुरक्षित
इसलिए हर मोड़ का निज अभिमान है
सोच का खुलापन लगे विकृत ज्ञान है
अधखुले सत्य का होता सम्मान है
रोशनी के लिए होता पूर्व लक्ष्यित
इतर दिशा दर्शाना महज़ अज्ञान है
संस्कृति कटघरे में फिर भी गुमान है
बस धरोहर पूंजी शेष मिथ्या भान है
ज्ञान कुंठित हो रही प्रगति बाधित
भूल रहे भारत इंडिया मेरी जान है
अपनी-अपनी डफली अपना गान है
चटख रही धूरी दिखता आसमान है
आप उठिए कीजिए सबको साधित
भारत का गौरव लिए स्वाभिमान है.
अपनत्व
लिए जीवन उम्र की भार से
एक हृदय ईश्वरी पुकार से
जीवन के द्वंद्व की ललकार से
बुढ़ापे को दे रहा अमरत्व है
ले आकांक्षा स्वप्निल सत्कार से
एक मन आंधियो के अंबार से
लिप्त जीवन के बसे संसार से
वृद्धता मचले जहां ममत्व है
दृष्टि में सृष्टि की ख़ुमार से
तन की लाचारी भरी गुहार से
भावनाओं को मिली बुहार से
कृशकाया से छूट रहा घनत्व है
अंजुरी में छलकते दुलार से
आंगन के कोलाहली बयार से
कुछ नहीं बेहतर परिवार से
बुढ़ौती का यही अपनत्व है
एक हृदय ईश्वरी पुकार से
जीवन के द्वंद्व की ललकार से
बुढ़ापे को दे रहा अमरत्व है
ले आकांक्षा स्वप्निल सत्कार से
एक मन आंधियो के अंबार से
लिप्त जीवन के बसे संसार से
वृद्धता मचले जहां ममत्व है
दृष्टि में सृष्टि की ख़ुमार से
तन की लाचारी भरी गुहार से
भावनाओं को मिली बुहार से
कृशकाया से छूट रहा घनत्व है
अंजुरी में छलकते दुलार से
आंगन के कोलाहली बयार से
कुछ नहीं बेहतर परिवार से
बुढ़ौती का यही अपनत्व है
गुरुवार, 18 नवंबर 2010
अबूझा यह दुलार है
मन के हर क्रंदन में, वंदनीय अनुराग है
नयन नीर तीर पर, सहमा हुआ विश्वास है,
अलगनी पर लटका-लटका देह स्नेह तृष्णगी
ज़िंदगी अलमस्त सी, लगे कि मधुमास है
घटित होती घटनाओं का सूचनाई अम्बार है
इस गली में छींक-खांसी, उस गली बुखार है,
प्रत्यंचा सा खिंचा, लिपा-पुता हर चेहरा
ज़िंदगी फिर भी धड़के, गज़ब का करार है
शबनमी तमन्नाओं में, नित ओस बारम्बार है
स्वप्न महल बन रहा, खोया-खोया आधार है,
आसमान को पकड़ने को, थकन चूर कोशिशें
ज़िंदगी फिर भी उड़े, अबूझा यह दुलार है
नयन नीर तीर पर, सहमा हुआ विश्वास है,
अलगनी पर लटका-लटका देह स्नेह तृष्णगी
ज़िंदगी अलमस्त सी, लगे कि मधुमास है
घटित होती घटनाओं का सूचनाई अम्बार है
इस गली में छींक-खांसी, उस गली बुखार है,
प्रत्यंचा सा खिंचा, लिपा-पुता हर चेहरा
ज़िंदगी फिर भी धड़के, गज़ब का करार है
शबनमी तमन्नाओं में, नित ओस बारम्बार है
स्वप्न महल बन रहा, खोया-खोया आधार है,
आसमान को पकड़ने को, थकन चूर कोशिशें
ज़िंदगी फिर भी उड़े, अबूझा यह दुलार है
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
मुहब्बत ना नकारा जाये
दर्द भी दिल के दायर को खूब सजाये
बेकरारी बेख़ौफ़ बढ़ती ही चले जाये
हवाओं की नमी में कैसा यह संदेसा
टीस उभरे और टपकने को मचल जाये
अंजुरी भर लिए खुशिओं का एक एहसास
दिन खुले और रजनी में समाता जाये
याद सजनी की खुश्बू सी रही फ़ैल अब
दिल बेचैन लिए बस्ती में घुमाता जाये
जो मिले बस मुझको पल भर को मिले
ज़िन्दगी को कौन यह जुगनू बनाता जाये
अपनी चमक से मिली ना तसल्ली अभी
दर्द के दाम में कोई मुझको बहाता जाये
धूप भी अच्छी लगे छाँव का हो आसरा
जेठ दुपहर में जीवन ना अब गुजारा जाये
दर्द में आह के सिवा ना कुछ और मिले
मैं भी मजबूर मुहब्बत ना नकारा जाये.
बेकरारी बेख़ौफ़ बढ़ती ही चले जाये
हवाओं की नमी में कैसा यह संदेसा
टीस उभरे और टपकने को मचल जाये
अंजुरी भर लिए खुशिओं का एक एहसास
दिन खुले और रजनी में समाता जाये
याद सजनी की खुश्बू सी रही फ़ैल अब
दिल बेचैन लिए बस्ती में घुमाता जाये
जो मिले बस मुझको पल भर को मिले
ज़िन्दगी को कौन यह जुगनू बनाता जाये
अपनी चमक से मिली ना तसल्ली अभी
दर्द के दाम में कोई मुझको बहाता जाये
धूप भी अच्छी लगे छाँव का हो आसरा
जेठ दुपहर में जीवन ना अब गुजारा जाये
दर्द में आह के सिवा ना कुछ और मिले
मैं भी मजबूर मुहब्बत ना नकारा जाये.
कोयल पीहू-पीहू बोले
बोलो ना कुछ, अलसाया-अलसाया सा मन है
आओ करीब मेरे, सुनो यह मन कुछ बोले,
कितना सुख दे जाता है,पास तुम्हारा रहना
एक हसीन थिरकन पर,तन हौले-हौले डोले
और तुम्हारी सॉसो में लिपट,यह चंचल मन
गहरे-गहरे उतर, तुम्हारे मन से कहे अबोले,
और बदन तुम्हारा बहके,देह गंध मुस्काए
मेरी अंगुली थिरक-थिरक कर, पोर-पोर खोले
मुख पर केश जो आए, बदरिया घिर-घिर छाए
झूम-झूम अरे चूम-चूम,मेरी चाहत को तौले,
हॉथ कहीं तो श्वास कहीं,कहॉ-कहॉ क्या हो ले
छनक ज़िंदगी ताल मिलाए, कोयल पीहू-पीहू बोले
आओ करीब मेरे, सुनो यह मन कुछ बोले,
कितना सुख दे जाता है,पास तुम्हारा रहना
एक हसीन थिरकन पर,तन हौले-हौले डोले
और तुम्हारी सॉसो में लिपट,यह चंचल मन
गहरे-गहरे उतर, तुम्हारे मन से कहे अबोले,
और बदन तुम्हारा बहके,देह गंध मुस्काए
मेरी अंगुली थिरक-थिरक कर, पोर-पोर खोले
मुख पर केश जो आए, बदरिया घिर-घिर छाए
झूम-झूम अरे चूम-चूम,मेरी चाहत को तौले,
हॉथ कहीं तो श्वास कहीं,कहॉ-कहॉ क्या हो ले
छनक ज़िंदगी ताल मिलाए, कोयल पीहू-पीहू बोले
सोमवार, 15 नवंबर 2010
दिल
कहीं उलझ कर अब खो गया है दिल
खामोशी इतनी लगे कि सो गया है दिल
ख़ुद में डूबकर ना जाने क्या बुदबुदाए
नमी ऐसी लगे कि रो गया है दिल
मेरे ही ज़िस्म में बेगाना लग रहा
करूं बहाने तब कहीं मिलता है दिल
अधूरे ख्वाब,चाहतें अधूरी, दिल भी
अरमानी डोर से आह सिलता है दिल
अलहदा रहने लगा आसमान सा अब
सपना सजना के अंगना, अबोलता दिल
रखना किसी की चाह में नूर-ए-ज़िंदगी
बेख़ुदी में हर लम्हे को तौलता है दिल
यह कैसी प्यास कि बुझना ना जाने
यह कैसी आस कि तकता रहे दिल
यह कौन सी मुराद कि फरियाद ना करे
यह कैसा दुलार कि ना थकता है दिल.
खामोशी इतनी लगे कि सो गया है दिल
ख़ुद में डूबकर ना जाने क्या बुदबुदाए
नमी ऐसी लगे कि रो गया है दिल
मेरे ही ज़िस्म में बेगाना लग रहा
करूं बहाने तब कहीं मिलता है दिल
अधूरे ख्वाब,चाहतें अधूरी, दिल भी
अरमानी डोर से आह सिलता है दिल
अलहदा रहने लगा आसमान सा अब
सपना सजना के अंगना, अबोलता दिल
रखना किसी की चाह में नूर-ए-ज़िंदगी
बेख़ुदी में हर लम्हे को तौलता है दिल
यह कैसी प्यास कि बुझना ना जाने
यह कैसी आस कि तकता रहे दिल
यह कौन सी मुराद कि फरियाद ना करे
यह कैसा दुलार कि ना थकता है दिल.
मंज़िल
मुझको मिली है मंज़िल, खुशियॉ मनाऊँगा
लम्हों को रोक लूँगा, और गीत गाऊँगा,
ऐसी भी चाहते हैं जो, मिलती नहीं दोबारा
चंदन की चॉदनी में, चंदा सजाऊँगा
धरती की चूनर में, आसमां चाहे लिपटना
तारों से लिपटकर के, सूरज को बुलाऊँगा
समंदर में सजाकर के, नयनों की दीपशिखा
सपनों की बातियों में, नई ज्योत जगाऊँगा
आख़िर में ज़िंदगी को, पहुँचना है उस पार
अंजुरी में भर विश्वास, इतिहास रचाऊँगा,
वक्त के काफिले से निकाल लूँगा, तुम्हें, मैं
वज़ीफा ख़ुद को देकर, सबको सुनाऊंगा.
धीरेन्द्र सिंह
लम्हों को रोक लूँगा, और गीत गाऊँगा,
ऐसी भी चाहते हैं जो, मिलती नहीं दोबारा
चंदन की चॉदनी में, चंदा सजाऊँगा
धरती की चूनर में, आसमां चाहे लिपटना
तारों से लिपटकर के, सूरज को बुलाऊँगा
समंदर में सजाकर के, नयनों की दीपशिखा
सपनों की बातियों में, नई ज्योत जगाऊँगा
आख़िर में ज़िंदगी को, पहुँचना है उस पार
अंजुरी में भर विश्वास, इतिहास रचाऊँगा,
वक्त के काफिले से निकाल लूँगा, तुम्हें, मैं
वज़ीफा ख़ुद को देकर, सबको सुनाऊंगा.
धीरेन्द्र सिंह
रविवार, 7 नवंबर 2010
अपने तलक ही रखना
अपने तलक ही रखना, कहीं ना बात निकल जाए
है अपना यही राज, कहीं ना बात फिसल जाए
लोगों के दरमियॉ,,खुली किताब का वज़ूद क्या
एक ज़िल्द चढ़ाए रखना, कहीं ना झलक जाए
माना कि सूरज को, छुपाना है बहुत मुश्किल
झोंके से बचे रहना,कहीं बादल ना निकल जाए
होता नहीं आसान, ज़ज्बातों से बच कर रहना
हलकी सी छुवन से, कहीं दिल ना पिघल जाये
है हिम्मत और हौसला, अपनी राह पर चलना
एक दुनिया बनी है अपनी, कोई ना छल पाए.
है अपना यही राज, कहीं ना बात फिसल जाए
लोगों के दरमियॉ,,खुली किताब का वज़ूद क्या
एक ज़िल्द चढ़ाए रखना, कहीं ना झलक जाए
माना कि सूरज को, छुपाना है बहुत मुश्किल
झोंके से बचे रहना,कहीं बादल ना निकल जाए
होता नहीं आसान, ज़ज्बातों से बच कर रहना
हलकी सी छुवन से, कहीं दिल ना पिघल जाये
है हिम्मत और हौसला, अपनी राह पर चलना
एक दुनिया बनी है अपनी, कोई ना छल पाए.
शबनमी बारिश
आज जब शाम से, तनहाई में मुलाकात हुई
रात ढलने से पहले, चॉदनी मेरे साथ हुई,
कुछ उजाले और कुछ अंधेरे से, मौसम में
डूबते सूरज से, सितारों की बरसात हुई.
मैं रहा देखता बस, बदलती इस तस्वीर को
चाहतें चुलबुली की, नज़रों से कई बात हुई,
शाम के झुरमुटों से, कुछ ऐसी चली हवा
ज़ुल्फें उड़ने लगी और ज़िंदगी जज्बात हुई.
कसमसाहट सी उठे, जिस्म तब पतवार लगे
इश्क कश्ती बहक, ना जाने किस घाट हुई,
यूँ ही अक्सर जब चहक पूछा करो मेरा हाल
गुल के शबनम सी, तबीयत की ठाठ हुई.
शाम के वक्त सा, चौराहा बन गया जीवन
रोशनी तो कहीं, अंधेरे से मुलाकात हुई,
किस कदर खामोश हो, देखता रहता है दिल
शबनमी बारिश जब, इश्क की सौगात हुई.
रात ढलने से पहले, चॉदनी मेरे साथ हुई,
कुछ उजाले और कुछ अंधेरे से, मौसम में
डूबते सूरज से, सितारों की बरसात हुई.
मैं रहा देखता बस, बदलती इस तस्वीर को
चाहतें चुलबुली की, नज़रों से कई बात हुई,
शाम के झुरमुटों से, कुछ ऐसी चली हवा
ज़ुल्फें उड़ने लगी और ज़िंदगी जज्बात हुई.
कसमसाहट सी उठे, जिस्म तब पतवार लगे
इश्क कश्ती बहक, ना जाने किस घाट हुई,
यूँ ही अक्सर जब चहक पूछा करो मेरा हाल
गुल के शबनम सी, तबीयत की ठाठ हुई.
शाम के वक्त सा, चौराहा बन गया जीवन
रोशनी तो कहीं, अंधेरे से मुलाकात हुई,
किस कदर खामोश हो, देखता रहता है दिल
शबनमी बारिश जब, इश्क की सौगात हुई.
आँखें
बहुत सीखती रहती है ज़माने से आँखें
ढूँढती रहती नयी राह जमाने में आँखें
होठों पर बिखरी है, मुस्कराहट हरदम
दर्द कोरों मे छुपा लेती हैं, नटखट आखें.
बहुत से ख्वाब बिखरे हैं, सवालों को लिए
जवाब ढूँढती है हकीकत में उलझी आँखें
भरी महफिल में, दिख रहे मशगूल लोग
उदासी को छुपा ना पाए, मटकती आखें.
रंगीन ऐनक में, छुपाने की पुरजोर कोशिश
बात-बेबात बोल जाती हैं, सबकी आखें.
नज़र से नज़र चुराती हैं, यह चंचल आखें
नज़र से नज़र मिले करे, एक दंगल आँखें
ढूँढती रहती नयी राह जमाने में आँखें
होठों पर बिखरी है, मुस्कराहट हरदम
दर्द कोरों मे छुपा लेती हैं, नटखट आखें.
बहुत से ख्वाब बिखरे हैं, सवालों को लिए
जवाब ढूँढती है हकीकत में उलझी आँखें
भरी महफिल में, दिख रहे मशगूल लोग
उदासी को छुपा ना पाए, मटकती आखें.
रंगीन ऐनक में, छुपाने की पुरजोर कोशिश
बात-बेबात बोल जाती हैं, सबकी आखें.
नज़र से नज़र चुराती हैं, यह चंचल आखें
नज़र से नज़र मिले करे, एक दंगल आँखें
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
प्यार की छुवन
आज फिर से चाहतों की, मखमली पुकार है
दिल का दिल से लिपटने का, आज त्यौहार है,
आपके कदमों ने मुझे, बख्शी है एक ज़िंदगी
गुगुनाते लम्हों में घुला, प्रीत का खुमार है.
नयन आसमान सा, विस्तार में अभिसार करे
गगन गीत गुंजन कहे, धरा मेरी एतबार है,
धरती की धड़कन में, राग भरा तड़पन उड़े
मेघ सा टूट बरस पड़े, हवाओं में हुंकार है.
साजन की सजनी बने, चंदा चाह में रजनी बने
चॉदनी सी धवल हो, दामिनी का अधिकार है,
प्यार की छुवन में छन-छन, छद्म सब तोड़ दे
एक हो तुम जिसमें मैं गुम, तुम मेरा संसार हो.
दिल का दिल से लिपटने का, आज त्यौहार है,
आपके कदमों ने मुझे, बख्शी है एक ज़िंदगी
गुगुनाते लम्हों में घुला, प्रीत का खुमार है.
नयन आसमान सा, विस्तार में अभिसार करे
गगन गीत गुंजन कहे, धरा मेरी एतबार है,
धरती की धड़कन में, राग भरा तड़पन उड़े
मेघ सा टूट बरस पड़े, हवाओं में हुंकार है.
साजन की सजनी बने, चंदा चाह में रजनी बने
चॉदनी सी धवल हो, दामिनी का अधिकार है,
प्यार की छुवन में छन-छन, छद्म सब तोड़ दे
एक हो तुम जिसमें मैं गुम, तुम मेरा संसार हो.
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
पनाह-पनाह-पनाह
अब नज़र किसकी और कैसी भला चाह
की है हमने भी मुहब्बत, वाह-वाह-वाह.
कई गुलदस्ते भी कुम्हला गए, छूकर मुझे
जला गई एक आग बोल, चाह-चाह-चाह.
देखे कई चेहरे, सुनी बातें, महकती अदाऍ
हर बार दिल बोल उठा, वही राह-राह-राह.
जब लगता था हैं क़रीब, तब थी दीवानगी
अब देख कर मुझे, कहें सब दाह-दाह-दाह.
मैं अपनी राह पर हूँ ढूँढता, खोए दिल को
दिलदार की पुकार में, पनाह-पनाह-पनाह.
की है हमने भी मुहब्बत, वाह-वाह-वाह.
कई गुलदस्ते भी कुम्हला गए, छूकर मुझे
जला गई एक आग बोल, चाह-चाह-चाह.
देखे कई चेहरे, सुनी बातें, महकती अदाऍ
हर बार दिल बोल उठा, वही राह-राह-राह.
जब लगता था हैं क़रीब, तब थी दीवानगी
अब देख कर मुझे, कहें सब दाह-दाह-दाह.
मैं अपनी राह पर हूँ ढूँढता, खोए दिल को
दिलदार की पुकार में, पनाह-पनाह-पनाह.
कोई लौट आया है
आइए, निगाहों ने फिर उसी, मंज़र को पाया है
देखिए, धड़कनों ने फिर वही, गीत गुनगुनाया है,
सुनिए, तासीर ता-उम्र तक, होती न खतम कभी
देखिए, आपको सुनने ख़ातिर, महफिल सजाया है.
रिश्तें भी कई किस्म के, होते हैं अनेकों रंग जैसे
कोई तो डोर होगी, जिसने बड़े हक़ से बुलाया है,
ख़याल आते ही,सीने में उठती थी आंधी सीने में
हक़ीकत यह भी है कि, मुझे यादों ने रूलाया है.
आप तो दिल निकालकर, पेश कर देते हैं हमेशा
पर अब तलक, दिल-दिलको ना समझ पाया है,
ख़ैर ज़िंदगी लंबी बड़ी, समझ लेंगे कभी फिर तो
हसरतों को सजने-संवरने दूँ, कोई लौट आया है.
देखिए, धड़कनों ने फिर वही, गीत गुनगुनाया है,
सुनिए, तासीर ता-उम्र तक, होती न खतम कभी
देखिए, आपको सुनने ख़ातिर, महफिल सजाया है.
रिश्तें भी कई किस्म के, होते हैं अनेकों रंग जैसे
कोई तो डोर होगी, जिसने बड़े हक़ से बुलाया है,
ख़याल आते ही,सीने में उठती थी आंधी सीने में
हक़ीकत यह भी है कि, मुझे यादों ने रूलाया है.
आप तो दिल निकालकर, पेश कर देते हैं हमेशा
पर अब तलक, दिल-दिलको ना समझ पाया है,
ख़ैर ज़िंदगी लंबी बड़ी, समझ लेंगे कभी फिर तो
हसरतों को सजने-संवरने दूँ, कोई लौट आया है.
प्रीत
जब तुम मुस्कराती हो, नयन में गीत होता है
लबों पर तड़पती बातें, ज़ुबां पर मीत होता है.
पलकों में लग जाते पंख, उड़ने को आमदा
अंगुलिओं में लिपटता मौन, यह रीत होता है
चमन की खुश्बुएं ले, लहराती हैं जब जुल्फें
गुलों के रंग पड़ते फीके, यही प्रतीत होता है
बिन बोले होती हैं बातें, ख़ामोशी भी घबराये
धडकनें धुन नयी सजाएं, यही तो प्रीत होता है
लबों पर तड़पती बातें, ज़ुबां पर मीत होता है.
पलकों में लग जाते पंख, उड़ने को आमदा
अंगुलिओं में लिपटता मौन, यह रीत होता है
चमन की खुश्बुएं ले, लहराती हैं जब जुल्फें
गुलों के रंग पड़ते फीके, यही प्रतीत होता है
बिन बोले होती हैं बातें, ख़ामोशी भी घबराये
धडकनें धुन नयी सजाएं, यही तो प्रीत होता है
हौले से सधे लफ्ज़ों से, उठती हरदम यह शरारत
तुम्ही वह ठौर हो, जो कानों मे करती रहे आहट.
कुछ भी ना सोचो, दिल से ज़रा सोचो मुझको
आसमॉ भी सिमट आता है, बड़ी चीज है चाहत.
मन को जुड़ना है तुमसे, तुम ही नदी व तीर हो
भँवर मे सोच फँसने की, उभरती है इक घबराहट.
ना वादे हैं, ना कसमें हैं, महज़ इक प्यार दीवाना
समंदर की लहरों की जैसे, किनारे से हो टकराहट.
इम्तिहॉ से कहॉ मिलता है, सवालों का कोई जवाब
जला देती है आहों से, सुलगती चाह की गरमाहट.
तुम्ही वह ठौर हो, जो कानों मे करती रहे आहट.
कुछ भी ना सोचो, दिल से ज़रा सोचो मुझको
आसमॉ भी सिमट आता है, बड़ी चीज है चाहत.
मन को जुड़ना है तुमसे, तुम ही नदी व तीर हो
भँवर मे सोच फँसने की, उभरती है इक घबराहट.
ना वादे हैं, ना कसमें हैं, महज़ इक प्यार दीवाना
समंदर की लहरों की जैसे, किनारे से हो टकराहट.
इम्तिहॉ से कहॉ मिलता है, सवालों का कोई जवाब
जला देती है आहों से, सुलगती चाह की गरमाहट.
मैं
गलियॉ-गलियॉ घूम चुका, ऐसा मैं दीवाना हूँ
झुलस-झुलस कर ज़िंदगी पाऊँ, ऐसा मैं परवाना हूँ.
तरह-तरह की आग जल रही, तपन सहन नहीं कर पाऊँ
लिपट-चिपट कर आग बुझा लूँ, मैं भी एक सयाना हूँ.
नाम आईना बनकर मुझको, ख्वाब नए दिखलाता है
चेहरा उनका ही दिखता है, मैं तो एक बहाना हूँ.
कितने-कितने तीर चल रहे, मीठी लगती है रसबोली
भोली बनकर करे शरारत, मैं भी एक तराना हूँ.
प्यार, मुहब्बत, इश्क, इबादत, मुझको एक से लगते हैं
इस बस्ती में जीनेवाला, मैं भी बड़ा पुराना हूँ.
झुलस-झुलस कर ज़िंदगी पाऊँ, ऐसा मैं परवाना हूँ.
तरह-तरह की आग जल रही, तपन सहन नहीं कर पाऊँ
लिपट-चिपट कर आग बुझा लूँ, मैं भी एक सयाना हूँ.
नाम आईना बनकर मुझको, ख्वाब नए दिखलाता है
चेहरा उनका ही दिखता है, मैं तो एक बहाना हूँ.
कितने-कितने तीर चल रहे, मीठी लगती है रसबोली
भोली बनकर करे शरारत, मैं भी एक तराना हूँ.
प्यार, मुहब्बत, इश्क, इबादत, मुझको एक से लगते हैं
इस बस्ती में जीनेवाला, मैं भी बड़ा पुराना हूँ.
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