सृष्टि आकृष्ट हो समिष्ट हो गई
अर्चनाएं अनुराग की क्लिष्ट हो गई
व्यक्तित्व पर व्यक्तित्व का आरोहण
गतिमानता निःशब्द मौन दृष्टि हो गई
प्रांजल नयन सघन गहन अगन
दाह तन स्पर्श कर वृष्टि हो गई
वैराग्य जीवन स्वप्न या छलावा एक
निरख छवि मनबसी दृष्ट हो गई।
धीरेन्द्र सिंह
अर्चनाएं अनुराग की क्लिष्ट हो गई
व्यक्तित्व पर व्यक्तित्व का आरोहण
गतिमानता निःशब्द मौन दृष्टि हो गई
प्रांजल नयन सघन गहन अगन
दाह तन स्पर्श कर वृष्टि हो गई
वैराग्य जीवन स्वप्न या छलावा एक
निरख छवि मनबसी दृष्ट हो गई।
धीरेन्द्र सिंह