शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष

आज नूतन नव किरण है, तुम कहां
मैं हूं डूबा इक गज़ल में, गुम जहां

कल जो बीता वह ना छूटा राग से
अब भी अनुराग, अभिनव कहकशां

सूर्य रश्मि पीताम्बरी में लिपट धाए
दौड़ता है मन यह आतुर बदगुमां

प्रीति उत्सव संग तरंग, नर्तन करे उमंग
गीत जो बस गए, गुनगुनाए यह ज़ुबां

कौन सी कोंपल नई, उभरी है अबकी
एक शबनम मचल रही, हो मेहरबां

एक संभावना संग, सपने नए मचल उठे
यथार्थ को चरितार्थ करें, मिलकर यहां.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.