मैं नहीं जा पाता हूं
सबकी पोस्ट पर
देने अपनी हाजिरी
कभी टिप्पणियां
अक्सर लाइक,
यह भीड़ तंत्र
साहित्य की
फेसबुकिया बीमारी है
कल तुमने किया लाइक
तो आज मेरी बारी है,
मन की रिक्तता
नहीं होती जब संतुष्ट
भावों को अभिव्यक्ति दे
तब भागता है मन
भीड़ की ओर
लोग आएं और मचाएं
निभावदारी का शोर,
नहीं गाता हूं
दूसरों के लिए
बेमन गाने, टिप्पणियां, लाइक
भ्रमित प्रशंसा काल में
साहित्य की धूनी
बुला लेती है खुद ब खुद
समय के एक भाग को।
धीरेन्द्र सिंह