शुक्रवार, 28 जून 2024

कैसी आवाज है

 हर मौसम का अपना ही मिज़ाज है

हर मोहल्ले का अपना ही समाज है

अनेकता में एकता की है बुनियाद

लोग कहने लगे कि यह राजकाज है


तर्क के गलीचे पर शब्दों के गुलदान

सजावटी परिवेश में होता कलआज है

आश्वासनों में भुलावे का चलन है

अभिलाषाओं की तलहटी में राज है


हर बंद दरवाजे में निजता का राग है

द्वार घंटी लिए अलग-अलग साज है

किवाड़ खोलिए कि अंदर जज्बात भरे

भ्रमित, शमित, रचित कैसी आवाज है।


धीरेन्द्र सिंह

29.06.2024

07.24



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