मन जब करता मन से बातें
चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते
हृदय डोर ही परिणय का छोर
सामाजिक बंधन परिवार अंजोर
समाज में सही सामाजिक बातें
चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते
आदिकाल से यह मन चंचल
मन चाहे कोई मनचाहा संबल
मन रम जाए सुधि रचि गाते
चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते
मानव इतिहास में हृदय नर्तन
जैसा तब था अब भी संवर्धन
प्यार कभी बदला कहां यह बातें
चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते।
धीरेन्द्र सिंह
16.05.2024
18.19