गुरुवार, 16 मई 2024

मन

 

मन जब करता मन से बातें


चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

हृदय डोर ही परिणय का छोर

सामाजिक बंधन परिवार अंजोर

समाज में सही सामाजिक बातें

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

आदिकाल से यह मन चंचल

मन चाहे कोई मनचाहा संबल

मन रम जाए सुधि रचि गाते

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते

 

मानव इतिहास में हृदय नर्तन

जैसा तब था अब भी संवर्धन

प्यार कभी बदला कहां यह बातें

चूर-चूर हों दूर सब रिश्ते-नाते।

 

धीरेन्द्र सिंह

16.05.2024

18.19