बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

निज भाव

शब्दों में पिरोया भाव तो अभिव्यक्ति बन गई
सम्प्रेषण का हुआ असर कि नई प्रीत बन गई

ई-मेल, टिप्पणियॉ या कि रचनाएं नई-नई
उन तक पहुंचने की कोशिशें गम्भीर बन भई

मन में भरे सतरंग तो निगाहों में है इज़्जत
आकर्षण का हलफनामा बन तीर तन गई

नित नए कौशल लिए प्रतिभा करे करिश्मा
रूचिकर लगे उनको तो मानो तकदीर बन गई

हर भाव की मंज़िल है अपना ही निज भाव
प्रस्ताव हो अपवाद तो नई लकीर बन गई.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.