पीड़ा है बीड़ा है कैसी यह क्रीड़ा है
मन बावरा हो करता बस हुंकार
पास हो कि दूर हो तुम जरूर
हो
कविताएं अकुलाई कर लो न
प्यार
अगन की दहन में आत्मिक मनन
प्रेमभाव वृष्टि फुहारों
में कर जतन
जीव सबका एक सबपर है अधिकार
कविताएं अकुलाई कर लो न
प्यार
चाह की आह में प्रणय आत्मदाह
डूबन निरंतर पता न चले थाह
एक लगन वेदिका दूजा मंत्रोच्चार
कविताएं अकुलाई कर लो न
प्यार।
धीरेन्द्र सिंह
02.07.2024
07.11