बुधवार, 31 जुलाई 2024

प्यास

 प्यास की हैं विभिन्न परिभाषाएं

प्यास से अर्जित विजय पताकाएं


मन से हो संवाद होता निर्विवाद

मन को कर आयोजित हो नाबाद

अपने कौशल की विभिन्न कलाएं

प्यास से अर्जित विजय पताकाएं


आस हो तो प्यास फिर विश्वास

बिना लक्ष्य चलती कहां है सांस

फांस कहीं अटका समझ ना आए

प्यास से अर्जित विजय पताकाएं


प्यास की बात और तुम्हारी न बात

ऐसा न हो दुश्मन के भी साथ

आस ना रहे तो जी कैसे पाएं

प्यास से अर्जित विजय पताकाएं।


धीरेन्द्र सिंह

01.08.2024

11.04


सोमवार, 29 जुलाई 2024

सागर

प्रातः 7.30 बजे का सागर
मंद लहरों पर थिरकता
सावन की हवाओं संग जल
अपलक देखता
“अटल सेतु”
लगभग नित्य का दृश्य,

तट पर खड़ा
जल की असीमता से
अपनी असीमता की
करता रहा तुलना,
मन में विश्व या
विश्व में मन,
बोला विवेक रुक पल
बता तन में कितना जल,

नवजात को मातृ दुग्ध
मृत देह को गंगाजल,
शिव का जलाभिषेक
सागर से राम अनुरोध,
जलधारी सागर को समझ
अतार्किक ऐसा न उलझ,

आज सागर क्यों बोल रहा
नित सागर तट से
मुड़ जाते थे कदम,
बूंदे गयी थी थम
बदलियां इतरा रही थी,
तरंगित कर देनेवाली धुन
तट ने कहा सुन
और जिंदगी गुन,

मंद लहरों में भी
होती है ऊर्जा,
किनारे के पत्थरों से टकरा
अद्भुत ध्वनि हो रही थी
निर्मित,
निमित्त,
पल भर में लगा
लुप्त हो गए विषाद, मनोविकार,
अति हल्का होने की अनुभूति
स्थितिप्रज्ञ जैसी उभरी स्मिति,

तट के पत्थरों से टकरा
करती निर्मित विभिन्न धुन
जैसे कर रही हों वर्णित
जीवन की विविधताएं
और दे रही थीं संकेत
लहरें बन जाइए,
बाएं कान से कुछ
तो दाएं कान से कुछ
आती विभिन्न ध्वनियां,
संभवतः रही हों प्रणेता
अत्याधुनिक स्पीकर निर्माण प्रणेता,

तुम्हारी साड़ी की
चुन्नटों की तरह लहरें
मंद गति से उठ रही थीं
जहां कवित्व था लिए श्रृंगार
जैसे कसर रही हों निवेदन
उन्माद में छूना मत वरना
खुल जाएंगी चुन्नटें,
सागर में भी कितना
हया की अदा है,

लौट पड़ा घर को
मैंग्रोव या समुद्री घास के
बीच की कच्ची, पथरीली राह
जहां असंख्य चिड़ियों, पक्षियों का
संगीत एक किलोमीटर तक
यही बतलाता है कि
सागर से लेकर मैंग्रोव तक
सरलता, सहजता, संगीत साम्य
मानव तू सृष्टि सा स्व को साज।

धीरेन्द्र सिंह



39.07.2024

11.56





हताश

 खिड़कियां बंद कर रोक रहे हैं प्रकाश

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


प्रतिबंधन आत्मिक होता, नहीं भौतिक

विरोध वहीं जहां संबंध निज आत्मिक

ब्लॉक करने पर भी झलकता उजास

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


हृदय फूल खिलते जैसे खिलें जंगल

खिलना न रुक पाए हृदय करे दंगल

विरोध, प्रतिरोध ढक न पाए आकाश

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश


याद न आए जो समझिए गए हैं भूल

भुलाने का प्रयास जमाए गहरा मूल

यह है नकारात्मक वेदना प्यारा सायास

कमरा कैसे रोशन सोचे न वह हताश।


धीरेन्द्र सिंह

30.07.2024

09.07



शनिवार, 27 जुलाई 2024

वह

 वह बिन लाईक, टिप्पणी मुझको पढ़ती है

बोल या अबोल सोच खुद में सिहरती है

मेरी रचना बूझ जाती बिनबोली सब बात

ऐसे नित मेरी रचनाओं में वह संवरती है


स्वाभिमान अभिमान बनाते सब संगी साथी

आसमान अपना समझ भ्रमित विचरती है

संवेदनाएं उसकी मेरी आहट की देती सूचना

हो जाती असहाय जब अपनों में बिहँसती है


कल्पनाएं भावपूर्ण हो तो बिखेरती बिजलियाँ

व्योम विद्युत सी आजकल मुझपर गिरती है

जिंदगी कब सीधी राह मिली किसी को

जिंदगी की है आदत प्रायः वह मचलती है।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

19.40

कजरी गूंजे

 आप मुझे निहार जब करें श्रृंगार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


मौसम मन को यहां-वहां दौड़ाए

लगे बिहँसि मौसम आपमें इतराए

नयन-नयन के बीच जारी भाव कटार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


कितना परवश कर जाता है मौसम

कभी पसीना मस्तक, फूल पड़े शबनम

ना रही शिकायत ना कोई तकरार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


हवा सुगंधित ऐसे जैसे सुरभित केश

मन बौराया मौसम या कारण विशेष

पुष्पवाटिका हृदय, है प्रतीक्षित द्वार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

19.11


मानवता लय

 प्रदूषण कम हुआ वनस्पतियों की सुगंध

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


शिव की आराधना में लपकती कामनाएं

सृष्टि में सफल रहे विभिन्न अर्चनाएं

शिवत्व का महत्व कांवड़िए जैसे पतंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


श्रध्दा में शक्ति है परालौकिक युक्ति है

साधना हो सुनियोजित मिलती मुक्ति है

कौन किसका साधक मन जैसे विहंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


मानव मन में कई मार्ग चलें कांवड़िए

शिवमंदिर, शिवधाम में विश्वास मढ़िए

विश्व कल्याण हो मानवता लय एकसंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

18.55

गुरुवार, 25 जुलाई 2024

पैसे बरस

 बूंद नहीं पैसे बरस कभी बादल

सपनीली आंखें अभाव के आंचल


छत जिनको भोजन, होता आयोजन

सावन का मौसम, लाए नए प्रयोजन

ध्वनि गूंजे टकराए, पैसा इन सांखल

सपनीली आँखें अभाव के आंचल


गरीबी दोष नहीं मात्र एक व्यवस्था

सावन इनके जीवन, भरे अव्यवस्था

दीन-हीन लगें, कुछ जैसे हों पागल

सपनीली आंखें अभाव के आंचल


इनकी करें बातें, कहलाते वामपंथी

विद्वता अनायास, धारित करे ग्रंथि

जो कह न सकें बातें हों कैसे प्रांजल

सपनीली आंखें अभाव के आँचल।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

21.27


बुधवार, 24 जुलाई 2024

अबकी सावन

 मैं चाहूं लेख लिख भारमुक्त हो जाऊं

या तो पोर-पोर भाव कविता रच जाऊं

तुम ही कह दो प्रणय संवेदिनी इस बार

अबकी सावन को कैसे में और रिझाऊं


इस बयार में देखो तो कितनी बेचैनी

बूंदे हर लेती बन मादक शीतल पैनी

पौधे, परदे, लटें तुम्हारी जैसे लहराउं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं


जब देखूं तुम रहती काम में सदा व्यस्त

बदरा-धरती बाहें थामे लगते हैं मस्त

भावों से कहते रहती बात समझ न पाऊं

अबकी सावन को कैसे मैं और रिझाऊं।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.21


ढीठ

 ढीठ बड़ा लगता है बरसात का पानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


शहर धुल जाता छप्पर सहित मकान

आप भी नई लगतीं ले स्व अभिमान

सावन सरीखा सुहानी सी जिंदगानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


कभी दूर लगें, बदलियां रचित व्योम

कभी मन श्लोक सा, पावन बन होम

प्यार शुचिता में जल, अगन तानातानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी


मन की सर्जना में तन की हो गर्जना

सावनी बयार है या आपकी अभ्यर्थना

मन बहके विवेक घुड़के उम्र क्यों नादानी

बहाव का प्रवाह और बदलती कहानी।


धीरेन्द्र सिंह

25.07.2024

09.05


मंगलवार, 23 जुलाई 2024

टूटी हैं तीली

सावन में

व्योम और धरा का

उन्मुक्त प्रणय

कर देता है उन्मादित

संवेदनशीलता को

प्रणय हवा आह्लादित,


सावन की सुबह

करती है निर्मित

हृदय प्यार पंखुड़ियां

सड़क चलें तो

मिलती जाती

प्रणय-प्रणय की कड़ियाँ,


स्व से प्यार

सड़क सिखलाए

सावन हरदम

बाहर झुलाए

भीतर तो घनघोर छटा

कुछ भींगा कुछ छूट पटा,


स्व में डूबे चलते-चलते

बारिश हो ली

खोला छाता देखा

कुछ टूटी हैं तीली

शरमाया मन 

अगल-बगल ताके नयन

जैसे खुला बटन रह गया

या हुक खुली लगे है चोली,


कौन अकेला लगता

सावन संग मनचोर है चलता

प्रकृति प्रेम बरसाए जब

छलिया मनजोर है छलता।


धीरेन्द्र सिंह

24.07.2024

07.58

रविवार, 21 जुलाई 2024

सावन की बरसात-दृश्य, अनुभूति

बरसात नहीं हो रही थी

बदलियों बेचैन थीं

हवा मद्धम थी

छाता लेकर निकल पड़ा

दैनिक चहलकदमी,

सावन का पहला दिन

बूंदें थीं गिन-गिन,


बदलियों सोच रही थीं

कभी बूंदे, कभी बंद

नहीं किया छाता बंद,

सड़क सूनी जैसे

आगमन राजनीतिक महंत,

शंकर का मंदिर

जोरदार था प्रबंध,


मैंग्रोव की लंबी हरीतिमा

और सागर

लौट पड़ा शिवकृपा ले,

बदलियां फूट पड़ीं

मानो प्रतीक्षा थी मंदिर तक,


सड़क चौड़ी अच्छी हो तो

बूंदें टकराकर सितारा बन जाती हैं,

दूर तक लगा सड़क पर

उतर आए हैं तारे,

सागर की हवा छाते को

चाह रही थीं करना उल्टा, 

एक जगह लगा 

उड़ा ले जाना चाहे हवा मुझे,

कमर तक भींग चुका था

बौछारें उन्मत्त थीं,


छाता और गिरती बूंदें

कर रही थीं निर्मित संगीत,

हवा का नर्तन था,

सावन का पहला सोमवार

सुमधुर कीर्तन था,


हवा ने बूंदों को शक्ति दी

लगा गए पूरा भींग,

मोबाइल को छाते के 

ऊपरी बटन तक पहुंचाते बचाते,

कोई ना था आते-जाते,

कभी कोई वाहन गुजर जाता,

गुजर रही थीं निरंतर पर

सड़क पर पानी की जलधाराएं

कहीं साफ तो मटमैली,


छाते को नीचे कर 

चिपका लिया सर से,

पहली बार अनुभव हुआ

बूंदों का मसाज,

नन्हीं-नन्हीं अंगुलियां असंख्य

कर रही थीं जागृत

अंतर्चेतना।


धीरेन्द्र सिंह

22.07.2024

08.39



शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

तेजस्विता

कौन देखता है नारी की ओजस्विता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

चहारदीवारी में कर अभिनव चित्रकारी

घर निर्मित करती सदस्य हितकारी

अपने संग घर की संभाले अस्मिता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

माना नर-नारी से निर्मित विद्यमान

पुरुष तपती धूप नारी तो है बिहान

झंझावातों में धारित लगे सुष्मिता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता

 

गृहस्थी दायित्व चुनौतियों का आसमान

नारी श्रृंगार घर छवि रचयिता अभिमान

थक कर समस्या उलझ अकेली जीवटता

गृहस्थी में भरती निरंतर तेजस्विता।

 

धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

11.18



पूछे दिल

आपकी अदा सदा रहती बुदबुदा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


एक संगीत धुन सी लगें गुंजित

ध्यान हो धन्य अदा में समाहित

जैसे भित्ती चढ़ती बलखाती लता

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


झूम कर जो चलें प्रकृति झूम जाए

आपकी दिव्यता से भव्यता मुस्काए

मुग्ध तंद्रा में दिल अंतरा दे सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता


यह पूछना प्रश्न नहीं ललक संवाद

दिल में क्यों होता अदाओं का निनाद

क्या प्रणय अव्यक्त की यही सजा

अक्सर पूछे दिल फिर से बता।


धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

09.30




देशभक्ति

 राष्ट्रप्रेम व्यक्तित्व शौर्य जतलाएं

सीमाओं को सुरक्षित करते जाएं

एक युवक नहीं पूरा परिवार है

योद्धा सभी क्षत्रीय धर्म ही निभाएं


एक युवती फौजी की बन पत्नी

समय अधिक प्रतीक्षा में बिताए

कब मिलेगी छुट्टी सजन को

खुशियां लुटाते द्वार को जगमगाएं


आती जब वीरगति प्राप्त सूचना

हिय प्रिय से मिलन को फड़फड़ाए

सिंदूर सुहाग ठगा सा है कंपकंपाता

तिरंगे में लिपटी देशभक्ति गुण गाए।


धीरेन्द्र सिंह

20.07.2024

07.14



गुरुवार, 18 जुलाई 2024

सुई और कालीन

 सूई से 

कालीन के मैले तागे

उकेरे जाते हैं तो

जुलाहा बोल पड़ता है

बिगड़ रहा है संतुलन

सूई का 

कैसा यह चलन,


चुप हैं सब

भदोही उद्यमी,

जुलाहा बुनकर कुशल

भूलकर अपना कौशल

धकेलने को प्रयासरत,

सूई प्रतिबद्ध है

उद्यमी व्यवसाय लगन,


कालीन सदियों से है

रहते थे दीवार भीतर

अब तो

कालीन सड़क पर है

धूल-धक्कड़ से जाए छुई

यही कहे सुई,


विरोध परिवर्तन करे

बाधा भी यही रचे,

कालीन पुकार रहे

जुलाहे आ सजें,

सुई भी बोलती

चल नायाब कालीन गढ़ें।


धीरेन्द्र सिंह

18.07.2024

16.53



बुधवार, 17 जुलाई 2024

कैसा विचार

 टहनी पर पैर जड़ पर प्रहार

पकड़ बनाए कैसा यह विचार

 

लकड़हारा है या जंगल लुटेरा

मतिमारा है या अकल जूझेरा

और कब तक है यह स्वीकार

पकड़ बनाए कैसा यह विचार

 

जंगल उन्मुक्त विचरण आदी

मंगल करते प्रहारी यह उन्मादी

उसकी कुल्हाड़ी इसकी कलमधार

पकड़ बनाए कैसा यह विचार

 

इधर काटे उधर छांटे अनवरत

लेखनी से वेदना करें समरथ

जंगल बचाइए अस्तित्व आधार

पकड़ बनाए कैसा यह विचार।

 

धीरेन्द्र सिंह

17.07.2024

22.00



सोमवार, 15 जुलाई 2024

फोन

 “प्लीज बी इन टच” फोन करते रहिएगा

ऐसा कोई बोले फोन कभी ना करिएगा


अपने पद की गरिमा के हैं सुप्त अरुणिमा

सेवानिवृत्ति के बाद भी चाहें वही महिमा

फोन कीजिएगा क्यों महिमामंडन भरिएगा

ऐसा कोई बोले फोन कभी ना करिएगा


पद पर बैठा बोले तो वह सबको तौले

और अस्पष्ट निवेदन कि गरिमा ना डोले

चापलूसी लगे ऐसा कह क्यों उभरिएगा

ऐसा कोई बोले फोन कभी न करिएगा


इसमें अपवाद मात्र अवस्था बीमारी है

निज चिकित्सक ही दवा-दारू खुमारी है

कोई कहे फोन करें तो खूब महकिएगा

ऐसा कोई बोले फोन कभी न करिएगा।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2024

10.35


आप भी

 सौंदर्य का सृष्टि पर उपकार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


पुष्प रंग और सुगंध दंग कर रहे

पुलकित हृदय नए प्रबंध कर रहे

टहनी लचक कमनीयता झंकार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


बारिश बूंदे फूटे झरने मस्त फुहार

शीतल जल चरणों का करे दुलार

आप नयन से बरसें जैसे गुहार हैं

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं


मन आपका वादियां आकर्षित जन

तन आपका शर्तिया व्योम का रहन

एक प्रतिरूप आप, कामना द्वार है

आप भी तो प्रकृति उपहार हैं।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2024

09.29




रविवार, 14 जुलाई 2024

उनकी अदाएं

 यह ना सोचिए कि हम बात नई करते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


एक सुगबुगाहट,गुदगुदाहट की अनुभूतियां

ध्यान में डूब जाती हैं सब जग नीतियां

आपकी स्पंदनों से भाव छुईमुई करते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


उनकी डीपी ही है उनका ज्ञात स्थूल रूप

भावनाओं की तारतम्यता में क्या स्वरूप

अलौकिन चेतनाओं में ही मीत उभरते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं


अति सूक्ष्म तरंगित होता है जीव प्यार

प्रत्यक्ष हो न हो अचेतन करता स्वीकार

प्यार की गहनता में शब्द सीप तरते हैं

उनकी अदाएं न कहे बात नहीं करते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2024

05.23

आवारगी

 मेरी आवारगी को हवा देती हैं

एक नौका को यूं वह खेती हैं


भावनाएं ही कल्पना की कृतियाँ

आप से ही जाना अर्चना रीतियाँ

आप तट लहर हर प्रहर संवेदी हैं

एक नौका को यूं वह खेती हैं


शब्द मिलते भाव की ले गिलौरी

चाह प्रत्यक्ष मिले यह कहां जरूरी

सुगंध भी कहाँ दर्शन देती है

एक नौका को यूं वह खेती है


आपकी भावनाओं के चलते चप्पू

आपकी अर्चना के हम हैं साधू

धूनी जलती है मन जगा देती है

एक नौका को यूं वह खेती है।


धीरेन्द्र सिंह

15.07.2024

05.00



शनिवार, 13 जुलाई 2024

उपवन

 विचारों के उपवन में मिलती हैं आप जब

सितारों सी अभिव्यक्तियां टिमटिमाती हैं

भावनाएं परखती हैं भावनाओं के नृत्य

जाने-अनजाने नई कविता रच जाती है


यूं ही अनायास उठे आपका वही सुवास

सर्जना सुगंध पा मचल कुलमुलाती है

आपके नयन के पलक छुपे भाव खिले

शब्द बारात लिए भावना आतिशबाजी है


कहन जतन श्रृंगार आपका ही उपहार

सौंदर्य भाव पट खोल खूब इतराती है

सच कहूँ आप ही निज रचना प्रताप

सर्जना आपके प्रणय की एक बाती हैं।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.36

दृग पनघट

 पनघट दृग अंजन अनुरागी

सहमत दृढ़ पलक अतिभागी

नीर प्रवाह झलक प्रथम हो

सुख-दुख का भी प्रतिभागी


नयन भाव अति सत्य प्रवक्ता

पनघट जुड़ाव रचि नित्यभागी

धवल-श्याम नित भाव प्रतिपल

निज व्यक्तित्व अटूट संभागी


मनफुहार दृग झंकार झुमाए

पनघट भाव प्रबल विज्ञानी

नयनों में झांकें बन चातक

पनघट स्वाति नक्षत्र का पानी।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.00



गुरुवार, 11 जुलाई 2024

बारिश का मौसम

 कहीं कुछ है भींगा जतन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

आज बादल है बरसा तो उभरी बूंदे

घटा घनघोर तरसी उठी हैं उम्मीदें

भींगना है या छुपना मनन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

मेघ गर्जन बूंद नर्तन निखरती विधाएं

सज उठी प्रकृति खिल बिहँसती जगाए

सजाऊँ कहें तो ना दमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

यह शीतल पवन खिला मन उपवन

बूंदें जितनी प्रबल उतना मन दहन

आग में न जल जाऊं शमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए।

 

धीरेन्द्र सिंह

12.07.2024

09.40



मंगलवार, 9 जुलाई 2024

सुन न

 तुम न, पुष्प में तीर का अदब रखती हो

सुन न, सुप्त के धीर सा गजब करती हो

 

आत्मसंवेदना एकाकार हो स्वीकार करने लगें

आत्मवंचना द्वैताकार को अभिसार करने लगे

धुन न, विलुप्त सी प्राचीर जद बिहँसती हो

सुन न, सुप्त के धीर से गजब करती हो

 

आप, तुम, तू आदि शब्द भाव प्रणय संयोजन

संबोधन है पुचकारता हो उत्सवी नव आयोजन

गुन न, गुणवत्ता में कितनी और निखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो

 

तू शब्द प्यार में संबोधन गहन रचे मदभार

तू संबोधित ईश्वर असहनीय हो अत्याचार

बुन न, प्रीत चदरिया जिसमें रश्मि बिखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.07.2024

06.30

गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सांझ सूरज

 किसी के सांझ की पश्चिमी सूरज लालिमा

पलक आधार बन कर रहें मुग्धित तिरोहित

पवन कुछ शीतल झोंके से है रही ढकेल 

श्याम परिधान में आगमन श्यामल पुरोहित


ठगे से रह गए हतप्रभ देखकर क्षितिज 

हृदय भाव श्रृंगारित सांझ आभा आधारित

आखेटक ही लेते जीत विचरती वन उमंगे

नयन रहा समेट चुपचाप परिवेश प्रसारित


कहां कब कौन छोड़े साथ हो अकस्मात

चलन राह पर होती भावनाएं प्रताड़ित

दम्भ का खम्भ कहे हम ही हरदम हम 

सांझ सूरज कहे प्यार न होता निधारित।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

10.53




टी 20

 टी20 विश्वकप वर्ष 24 विजेता नाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


एकल प्रदर्शन ले अपने कौशल का साथ

दीवानगी इतनी कि प्रभावित दर्शक हाँथ

कभी नाम खिलाड़ी तो भारत जिंदाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


कौन था सजाया रहस्य क्रिकेट सुलझाया

प्रतिभाओं को माँज दिव्य ऊर्जा जगाया

बुद्ध की एकाग्रचित्तता राम सा युद्ध नाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


मुंबई मरीन ड्राइव असंख्य जनबल सुहाई

नवांकुर क्रिकेट प्रतिभा बैट बॉल अमराई

अपार भीड़ फिर आए ऐसे इसके भी बाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

09.37



बाधित

 केबल ही बंद कर दिए तरंगें बाधित

यह श्राप नया है प्रौदयोगिकी बाधित

 

कर दिए ब्लॉक मनोभाव की शुष्नुमाएं

नाड़ियां स्पंदित भाव सोच कहां जाएं

केबल लगे केंचुल सनक में सम्पादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

बेतार का तार कई जीवन रहा संवार

आप केबल ठेपी परे, अबोला है तार

ताक-झांक चहुंओर निःशब्द मर्यादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

हर पर्दे से सशक्त प्रौद्योगिकी का पर्दा

अश्व असंख्य मनोभाव के उडें ना गर्दा

अदृश्य अलौकिक बन मन में अबाधित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित।

 

धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

07.22

बुधवार, 3 जुलाई 2024

कहानी

 मुझको अपने वश कर ले, जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

पतझड़ में रुनझुन, खनके सावन गीत

वर्षा रिमझिम में, विरह तके मनमीत

अक्सर कहते लोग, मुझमें बदगुमानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

करधन में लगा है उसका ही जपगांठ

बहुत छुपाया लग न जाए, कोई आंख

सांस गहन होती, मगन नमन जिंदगानी

गलियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी

 

तन्मय मन उपवन में, दीवानगी जतन

क्यों जिंदगी गुनगुनाती होती ना सहन

जीवन दे दीवानगी व्योम धरा मनजानी

गालियां कूचे बोल रहे, मेरी ही कहानी।

 

धीरेन्द्र सिंह

03.07.2024

06.18