तुम्हें इस कदर हम देखा किए हैं
कि निगाहों को कोई भी जंचता नहीं
खूबी जो तुम में बुलाती हमें ही
तुम्हारे नयन प्यार हंसता नहीं
बहुत जानती हो तराना मोहबत के
एहसासों में यूं कोई बसता नहीं
हुनर प्रीत का बनाती हो मौलिक
किसी और में यह दिखता नहीं
एक चाह का उछाल संबोधन तुम
आप बोलूं तो प्यार झलकता नहीं
एक आदर और सम्मान समर्पित
बिन इसके प्यार खुल हंसता नही
प्यार तो विनम्रता की उन्मादी हिलोर
बिना तट के प्यार बहकता नही
लहरों की ऊर्जा हो स्पंदित तुम में
जब तक न बहको दहकता नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
21.05.2024
22.30