मंगलवार, 20 मई 2025

चाय या तुम

 झुकती लय टहनियां वाष्पित झकोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


एक घूंट चाय सा लगता है संदेशा

गर्माहट भरी मिठास अनुराग सुचेता

गले से तन भर झंकृत हो पोरे-पोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


अंगुली तप जाए अधर उष्णता दास

चाय रहती तपती करती चेतना उजास

रंगमयी कल्पनाएं संग चाय दौड़े-दौड़े

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे


हो जिद्दी बारिश, गर्मी हो या सर्दियां

हल्का हुआ विलंब छा देती हो जर्दियाँ

कोई न बीच हमारे चुस्कियां मोरे-मोरे

एक चाय सी हो लगती तुम भोरे-भोरे।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2025

11.01



नारी

 आप मन प्रवाह की तीर हैं

कल्पना प्रत्यंचा अधीर है

स्वप्न गतिशील सुप्त गुंजित

संकल्पना सज्जित प्राचीर है


सौम्यता से सुगमता संवर्धित

उद्गम उल्लिखित पीर है

सौंदर्य को करती परिभाषित

कौन कहता मात्र शरीर हैं


स्वेद को श्वेत कर सहेजती

भेद में प्रभेद लकीर है

सत्य लुप्त कर दिया गया

तथ्य तीक्ष्णता की नीर हैं


विश्व वृत्त की कई क्यारियां

नारियां हीं नित्य वीर हैं

पुरुष एक मचान सदृश रहे

श्रेष्ठता युग्म की तकदीर हैं।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

19.46




प्रतीक्षा

 नयन बदरिया पंख पसारे

पाहुन अगवानी को धाए

अकुलाहट से भरी गगरिया

मन छलकत नेह भिगाए


साँसों की गति अव्यवस्थित

स्थिति खुद को अंझुराए

गाय सरीखा उदर भाव है

चाह राह तकते पगुराए


गहन सदीक्षा मगन प्रतीक्षा

अगन द्वार खूब सजाए

युग्म हवन कोमल अगन

हृदय थाप की नई ऋचाएं


संगत भाव मंगत छांव

पंगत में लगते कुम्हलाए

झुंड चिरैया उड़ती हंसती

पाहुन आए लखि बौराए।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

16.00