सोमवार, 17 जून 2024

मांजने को पद्य

 उसने कहा था पद्य से अच्छा लिखते गद्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य


लगा बांधने उसको शब्दों की वेणी में

काव्य-काव्य ही रच रहा उसके श्रेणी में

तुकबंदी रहित वह रचती कविता सद्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य 


मुझको खुद में गूंथ उसका है काव्य संकलन

ऐसा ना देखा प्रथम प्रकाशन का चलन

ऐसे जनमी बौद्धिक संतान हमारे मध्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य


नर-नारी संपर्क से संभव होता निर्माण

संबंध नहीं था उससे पर थी वह त्राण

कवयित्री बनते ही हो गयी वह नेपथ्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

10.28

नारी

 मोहब्बत नहीं बस प्यार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


शायरी की संस्कृति में है पर्देदारी

काव्य सर्जना में सर्वनेत्री है नारी

नारी का सर्वांगीण शक्तिधार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


घूंघट उठाकर चेहरा देखना अपमान

शौर्य भक्ति पर नारी को है अभिमान

नारी संचालित मुखर स्वीकार्य चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


मूल भारतीय संस्कृति है नारी उन्मुख

एक भव्य नारी इतिहास है विश्व सम्मुख

ऑनलाइन आक्रमण भंजक वार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

09.45


ब्लॉक

 प्यार की परिणीति होती है आध्यात्म

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त


तेवर, कलेवर, अहं, सुनी-सुनाई बात

लोग चाहें डुबोना करते हैं मीठे घात

सोच प्रभावित होती कुछ होते उत्पात

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त


पर्वत सी धीरता, गंभीरता बहुत जरूरी

प्यार में कभी होती नहीं जी हुजूरी

जिसने किया ब्लॉक होगी त्रुटि ज्ञात

ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त


प्यार हो गया तो वह ना चुक पाता है

नए आकर्षण पर व्यक्ति झुक जाता है

फिर आकर्षण में ना मिठास ना बात

ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त


समय लौटता इतिहास भी दोहराता है

प्यार खो गया सोच मन घबड़ाता है

पुनरावर्तन, प्रत्यावर्तन से सृष्टि नात

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

04.49