बुधवार, 28 जून 2023

प्यार

 बादलों को पर्वतों से अनुराग है

या बताएं प्यार में तो त्याग है


तपन में जल संचयन आराधना

मनन सृष्टि वृष्टि से है थामना

बादलों का यह अनोखा राग है

या बताएं प्यार में तो त्याग हैं


जल सहेजे उड़ चलें ऊपर बहुत

हल करें पर्वत तृष्णा छूकर उत

या कहें यह मिलन की आग है

या बताएं प्यार में तो त्याग है


कोमलता में विश्व शक्ति व्याप्त

रूढ़ता हठवादिता अहं में आप्त

मन अडिगता खंडित विवाद है

या बताएं प्यार में तो त्याग है


बरसते बादलों में जीवन दर्शन

बादलों का विद्युतीय आत्म तर्पण

बादलों को मात्र सावनी निनाद है

या बताएं प्यार में तो त्याग है।


धीरेन्द्र सिंह

29.06.2023

07.52

मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे वे


धुली सुबह


मुस्कराती धुली सुबह

शीतलता संग बह

बालकनी को दुलारे

शालीनता में मह


धो लिए पाप सारे

व्यक्तिगत हालात सह

एक ताज़गी समेटे

बारिशों के सह


पर्वत,मकान, रिक्त धरा

पूर्ण संभावना तह

ऊबड़खाबड़ कहीं भव्यता

जीवन जाता कह


सुबह का दर्शन

दर्शाएं राहें कह

उच्चता दर्शा मानव

मेघ बाहें गह।


धीरेन्द्र सिंह

28.06.2023

09.19

रविवार, 25 जून 2023

मसखरा


निर्विवाद व्योम व शालीन धरा

बादलों से बड़ा कहां मसखरा


सूर्य की प्रचंड रश्मियां धाएं

दग्ध धरा शालीन अकुलाए

मेघ कामना कृषक आसभरा

बादलों से बड़ा कहां मसखरा


तपन जब स्व का करे शमन

मनन तब तरसे ले बूंद लगन 

आसमान बदलियों से हरा-भरा

बादलों से बड़ा कहां मसखरा


वृष्टि सृष्टि की जीवनदायिनी

दृष्टि वृष्टि की भाग्यदायिनी

कर्म बादलों का तो रसभरा

बादलों से बड़ा कहां मसखरा


मेघ काले व्योम में बूंदे सजाए

श्वेत बादल आएं व बरस जाएं

श्वेत-श्याम से सबका नभ भरा

बादलों से बड़ा कहां मसखरा।


धीरेन्द्र सिंह

25.06.2023

19.25


शनिवार, 24 जून 2023

इश्क़ भी रहमत है


यार तुमको भूल जाऊं कैसी हरकत है

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


न हो संवाद शब्द तो भाव भी तो हैं

भावनाओं से जग भी तो सहमत है

तुम कितनी दूर हो मजबूर भी कहीं

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


गुरुर अपना बिना किसी आधार के

गर्व पर जो आए वह जहमत है

तुम्हारा घमंड ही तनाव दिया प्रचंड

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


मासूम बनकर जिंदगी जीना भी हुनर

मासूमियत पाकीज़गी की बतरस है

भोलेपन से छली या गयी छली कहीं

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है


यह इश्क़ जिसने चखा गूंगा हो गया

प्रणय प्रगल्भ में भी बेहद कसरत है

जीवन को जी लेने की हसरतें अनेक

सुना है जिंदगी में इश्क़ भी रहमत है।


धीरेन्द्र सिंह


शुक्रवार, 23 जून 2023

स्व का सत्य

 

सत्य का उद्गम कहां

मवेशियों की चाह है

चारागाह की समीक्षा

युगों से अथाह है


दृष्टि परिधि में विधि

तिथि निधि माह है

अवलोकन ही तथ्य

रीति प्रतीति खास है


स्व सुकृति लगे विभाजित

मर्यादित क्या राह है

एकल एकत्व कहीं नेपथ्य

अर्थाघृत अमृत वाह है


खंडित मंडित हो रहे

पंडित ज्ञानी आह हैं

रंजित व्यंजित संधि

संचित वंचित दाह है


खोह में भी टोह

मोह लगे स्याह है

सोह सकल आधिपत्य

 कलुषता अथाह है


भगवान भव्य कहे श्रव्य

अंतस अपथ प्यास है

सत्य से संपृक्त व्यक्तित्व

कृतित्व क्यों उदास है।


धीरेन्द्र सिंह

24.06.2023

07.12


बुधवार, 21 जून 2023

धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य


शब्द को उलीचते आदित्य हो गए

बिन तपे वह तो साहित्य हो गए


जो भी लिख दिए वह भाव गहन

लाईक टिप्पणियों सानिध्य हो गए

एक कोना रोशनी कृत्रिम कर वो

रचनाधर्मिता के आतिथ्य हो गए


यौन वर्जनाओं को प्रेम हैं कहते

बोल्ड लेखन के मातृत्व हो गए

दूसरों की प्रतिक्रिया अश्लीलता लगे

शोर मचाते वह स्त्रीत्व हो गए


धड़ाधड़ लेखन भ्रम साहित्य का

प्रदीप्त क्या लगे, कृतित्व हो गए

साहित्य सरणी का प्रस्फुटन वह

यह सोच समेट, निजत्व हो गए


हिंदी में कथाकार, कवि का घनत्व

अपनत्व छांव में कवित्व हो गए

हर रोज मंडली भजन भाव से मिले

कारवां सीमित में औचित्य हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 19 जून 2023

मुंतशिर हो गए

 

पहले देखा, बद्र बशीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


याद शायरी महकी उनकी जुबानी

हिंदी की मचलती दिखी रवानी

मोहब्बत की बदली नीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


छल कपट बहुरूपिया अंदाज लिए

क्षद्म खूबसूरती का नाज लिए

चाहतों की दरिया के पीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


इतिहास, पुराण की भ्रमित घ्राण

नई पीढ़ी तक पहुंचाने दिव्य प्राण

हवन कुंड की तो खीर बन गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए


घमंडी रणबांकुरे भी तीर हो गए

चले तो मनोज मुंतशिर हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

20.06.2023

06.48