सारे गुलाब बिक गए गुलाबो की आस में
एक दिन क्या आया कि मोहब्बत जग गयी
यह ज़िंदगी की दौड़ है हर कहीं पर होड़ है
जतला दो प्यार आज ना कहना कि हट गयी
यह धडकनों की पुकार है या कि इज़हार है
देने को भरोसा मान एक दुनिया है रम गयी
चितवन से, अदाओं से, शब्दों के लगाओं से
छूटा लगे है रिश्ता कि तोहफों की बन गयी
एक मलमली एहसास में जो छुप जाए कोई खास
ऋतुएं बदल जाएँ कि लगे धरती थम गयी
एक राग से अनुराग कि चले न फिर दिमाग
फिर कैसा एक दिन कहें उल्फत मचल गयी
यार के दरबार में ना होता रिश्तों का त्यौहार
एक बिजली चमकती है कि धरती दहल गयी
कोई गुलाब,तोहफा मोहब्बत को न दे न्यौता
एहसास का है जलवा झुकी पलकें कि चल गयी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.