सूई से
कालीन के मैले तागे
उकेरे जाते हैं तो
जुलाहा बोल पड़ता है
बिगड़ रहा है संतुलन
सूई का
कैसा यह चलन,
चुप हैं सब
भदोही उद्यमी,
जुलाहा बुनकर कुशल
भूलकर अपना कौशल
धकेलने को प्रयासरत,
सूई प्रतिबद्ध है
उद्यमी व्यवसाय लगन,
कालीन सदियों से है
रहते थे दीवार भीतर
अब तो
कालीन सड़क पर है
धूल-धक्कड़ से जाए छुई
यही कहे सुई,
विरोध परिवर्तन करे
बाधा भी यही रचे,
कालीन पुकार रहे
जुलाहे आ सजें,
सुई भी बोलती
चल नायाब कालीन गढ़ें।
धीरेन्द्र सिंह
18.07.2024
16.53