गुरुवार, 18 जुलाई 2024

सुई और कालीन

 सूई से 

कालीन के मैले तागे

उकेरे जाते हैं तो

जुलाहा बोल पड़ता है

बिगड़ रहा है संतुलन

सूई का 

कैसा यह चलन,


चुप हैं सब

भदोही उद्यमी,

जुलाहा बुनकर कुशल

भूलकर अपना कौशल

धकेलने को प्रयासरत,

सूई प्रतिबद्ध है

उद्यमी व्यवसाय लगन,


कालीन सदियों से है

रहते थे दीवार भीतर

अब तो

कालीन सड़क पर है

धूल-धक्कड़ से जाए छुई

यही कहे सुई,


विरोध परिवर्तन करे

बाधा भी यही रचे,

कालीन पुकार रहे

जुलाहे आ सजें,

सुई भी बोलती

चल नायाब कालीन गढ़ें।


धीरेन्द्र सिंह

18.07.2024

16.53