भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
वह कभी नहीं चाहती
कविता लिखूं और
कर दूं पोस्ट उसे
बल्कि
उलाहने देते
सजा देती है
मेरी कविता को
किसी उपयुक्त चित्र
या फोटो से
और
उस रचना में ढल
बन जाती है
खुद कविता
कद्रदान लोग
करते हैं लाइक
यह सोचकर कि
एक अच्छी कविता लिखा हूँ।
धीरेन्द्र सिंह