प्यार आजन्म, बस एक मधुर गुंजन है
बहुत कम लोगों का, इससे समंजन है
एक छुवन, एक कंपन, एक जुगलबंदी
प्यार की हदबंदी का क्या यही अंजन है
मां, बहन, भ्राता आदि लगें औपचारिकताएं
प्रेमी-प्रेमिका भाव नित्य का अभिनंदन है
हंसी-मजाक में देते निमंत्रण तपाक से
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या कि क्रंदन है
वासना मुखरित हो रही विभिन्न रूप में
क्या प्यार की अनुभूतियों का भंजन है
लग रहा देख सोशल मीडिया का लेखन
प्यार भ्रमित, दूषित का, बढ़ रहा निबंधन है
प्यार पोषित, सिंचित, पल्लवित, पुष्पित
झटपट, चटपट का बढ़ रहा जगवंदन है
मन को छुए बिना तन की ओर धाएं
संवाद साधनों में यह रुचिकर व्यंजन है
प्यार उपेक्षित शालीन सा पड़ा है कहीं
ललक छलक ढलक जैसे कि मंजन है।
धीरेन्द्र सिंह
12.05.2024
17.39