सूनी गलियां सूनी छांव
पिघल रहे हैं सारे गांव
युवक कहें है बेरोजगारी
श्रमिक नहीं, ताके कुदाली
शिक्षा नहीं, पसारे पांव
पिघल रहे हैं सारे गांव
खाली खड़े दुमंजिला मकान
इधर-उधर बिखरी दुकान
वृक्ष के हैं गहरे छांव
पिघल रहे हैं सारे गांव
भोर बस की ओर दौड़
शहर का नहीं है तोड़
शाम को चूल्हा देखे आंव
पिघल रहे हैं सारे गांव
वृद्ध कहें जीवन सिद्ध
कहां से पाएं दृष्टि गिद्ध
घर द्वार पर कांव-कांव
पिघल रहे हैं सारे गांव
भागे गांव शहर की ओर
दिनभर खाली चारों छोर
रात नशे का हो निभाव
पिघल रहे हैं सारे गांव।
धीरेन्द्र सिंह
01.04.2024
18.30