उड़ न चलो संग मन पतंग हो रहा है
देखो न आसमान का कई रंग हो रहा है
एक तुम हो सोचने में पी जाती हो शाम
फिर न कहना मन क्यों दबंग हो रहा है
आओ चलें समझ लें खुद की हम बातें
कुछ बात है खास या तरंग हो रहा है
एक सन्नाटे में ही समझ पाना मुमकिन
चलो उडें यहाँ तो बस हुडदंग हो रहा है
मत डरो सन्नाटे में होती हैं सच बातें
मेरी नियत में आज फिर जंग हो रहा है
ऊँचाइयों से सरपट फिसलते खिलखिलाएं हम
देखो न मौसम भी खिला भंग हो रहा है
आओ उठो यूँ बैठने से वक़्त पिघल जायेगा
फिर न कहना वक़्त नहीं मन तंग हो रहा है
एक शाम सजाने का न्योता ना अस्वीकारो
बिखरी है आज रंगत तन सुगंध हो रहा है.