किसी के सांझ की पश्चिमी सूरज लालिमा
पलक आधार बन कर रहें मुग्धित तिरोहित
पवन कुछ शीतल झोंके से है रही ढकेल
श्याम परिधान में आगमन श्यामल पुरोहित
ठगे से रह गए हतप्रभ देखकर क्षितिज
हृदय भाव श्रृंगारित सांझ आभा आधारित
आखेटक ही लेते जीत विचरती वन उमंगे
नयन रहा समेट चुपचाप परिवेश प्रसारित
कहां कब कौन छोड़े साथ हो अकस्मात
चलन राह पर होती भावनाएं प्रताड़ित
दम्भ का खम्भ कहे हम ही हरदम हम
सांझ सूरज कहे प्यार न होता निधारित।
धीरेन्द्र सिंह
05.07.2024
10.53