मंगलवार, 11 जुलाई 2017

गमगीन है, उदास है
डगमग लगे विश्वास है
एक द्वंद्व अजूबा सा
वैचारिक उलझा उच्छवास है

यह प्यास की अपूर्णता
या फिर नई तलाश है
मन तो आराजित रहे
जीवन में क्या खास है

जो उलझा वही सुलझा
जो सुलझा वही विन्यास है
निष्क्रियता है स्पंदनहीनता
उलझिए न क्यों हताश हैं

पीड़ा का अर्थ नवीनता
सहनशीलता ही आकाश है
धरा की जो है उर्वरताएँ
अनेकों संभावनाओं की आस है।

शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

.सेदोका

हिम खंड लो
टूटती जलधारा
तोड़े तटबंध को
रोक लो अब
वरना तो डरना
जलमग्न बहना।

2. खुले में शौच
     खोले रोग अपार
     गंदगी भरमार
     बंद हो द्वार
     सफाई की पुकार
      आप ही सरकार।

3.  प्लास्टिक रोको
     यह घातक बड़ा
     न उपयोग बढ़ा
     प्लास्टिक है बुरा
     उपयोग बंद हो
     मानव तू नहीं सो।

4. गीला सूखा रे
    अलग हो कचड़ा
    ना कर तू लफड़ा
    गीला अलग
    सूखा कचड़ा भी
    शुद्ध परिवेश जी।

5. गंगा पवित्र
    नदी नहीं जीवन
    आत्मा का ही यौवन
     फूल न बहा
     प्रार्थनाएं ही बहे
     गंगा कितना सहे।

   

गुरुवार, 6 जुलाई 2017

वही हौसला है
क्या फैसला है
उम्मीदों का बादल
फिर निकल पड़ा है

एक अनुभूति गहराती
मन प्यासा घड़ा है
एक ज़िन्दगी की गति
स्वप्न मूक खड़ा है

विस्मय निरख रहा
एहसास बड़ा है
सौंदर्य सुगंधमयी
नैवेद्य पड़ा है

प्रांजलता की चाहत
अकुलाहट अकड़ा है
हृदय में रागिनियाँ
कूदता भोला बछड़ा है।