कहो सच कहोगी या कविता बसोगी
कोई दिन न ऐसा जो तुमतक न धाए
नयन की कहूँ या हृदय हद में रहूं
हो मेरी या समझूँ हो गए अब पराए
कई भावनाओं का होता निस मंथन
बंधन की डोर खुशी लिए लपक जाए
कोई एक बंधन हृदय सुरभित चंदन
करो अबकी कोशिश ह्रदय लग जाए
कहां डाल एकल कुहूक जाए कोयल
प्रतिबद्धता प्यार अब तो ना निभाए
छमकती है पायल बिराती है बिछिया
कहो मन ऐसे में क्यों न गुनगुनाए।
धीरेन्द्र सिंह
10.09.2024
19.42