यदि मैं कह पाता मन की बातें
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
कविता में फिर
कहता क्यों
ठौर मुकम्मल सचमुच
होता तो
फिर भावों में यूं बहता क्यों
सुघड़-सुघड़ जीवन, ना अनगढ़
चलती चाकी, मन रुकता क्यों
कर प्रयास, संग प्यास आस के
तृप्ति तिमिर से, डरता क्यों
प्रांजल नयनों से कर पुकार
हुंकारों से फिर हटता क्यों
मिलन प्रीत की कर जिज्ञासा
संकेतों पर, ना ठहरता क्यों
भाव असंख्य, अनगिनत अभिव्यक्तियां
अनवरत डुबकियाँ, ना उबरता क्यों
बहका-बहका मन रहे बावरा
दिल सा जीवन, ना निखरता क्यों।
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.