रविवार, 7 नवंबर 2010

अपने तलक ही रखना

अपने तलक ही रखना, कहीं ना बात निकल  जाए
है अपना यही राज, कहीं
ना  बात फिसल  जाए

लोगों के दरमियॉ,,खुली किताब का वज़ूद
क्या
एक ज़िल्द चढ़ाए रखना, कहीं ना झलक जाए

माना कि सूरज को, छुपाना है बहुत मुश्किल
झोंके से बचे रहना,कहीं बादल
ना निकल जाए

होता नहीं आसान, ज़ज्बातों से बच कर रहना
हलकी सी छुवन से, कहीं दिल
ना पिघल जाये

है हिम्मत और हौसला, अपनी राह पर चलना
एक दुनिया बनी है अपनी, कोई ना छल पाए.  

शबनमी बारिश

आज जब शाम से, तनहाई में मुलाकात हुई
रात ढलने से पहले, चॉदनी मेरे साथ हुई,
कुछ उजाले और कुछ अंधेरे से, मौसम में
डूबते सूरज से, सितारों की बरसात हुई.

मैं रहा देखता बस, बदलती इस तस्वीर को
चाहतें चुलबुली की, नज़रों से कई बात हुई,
शाम के झुरमुटों से, कुछ ऐसी चली हवा
ज़ुल्फें उड़ने लगी और ज़िंदगी जज्बात हुई.

कसमसाहट सी उठे, जिस्म तब पतवार लगे
इश्क कश्ती बहक, ना जाने किस घाट हुई,
यूँ ही अक्सर जब चहक पूछा करो मेरा हाल
गुल के शबनम सी, तबीयत की ठाठ हुई.

शाम के वक्त सा, चौराहा बन गया जीवन
रोशनी तो कहीं, अंधेरे से मुलाकात हुई,
किस कदर खामोश हो, देखता रहता है दिल
शबनमी बारिश जब, इश्क की सौगात हुई.

आँखें

बहुत सीखती रहती है ज़माने से आँखें
ढूँढती रहती नयी राह जमाने में आँखें

होठों पर बिखरी है, मुस्कराहट हरदम
दर्द कोरों मे छुपा लेती हैं, नटखट आखें.

बहुत से ख्वाब बिखरे हैं, सवालों को लिए
जवाब ढूँढती है हकीकत में उलझी आँखें

भरी महफिल में, दिख रहे मशगूल लोग
उदासी को छुपा ना पाए, मटकती आखें.

रंगीन ऐनक  में, छुपाने की पुरजोर कोशिश
बात-बेबात बोल जाती हैं, सबकी आखें.

नज़र से नज़र चुराती हैं, यह चंचल आखें
नज़र से नज़र मिले करे, एक दंगल आँखें