सोमवार, 24 दिसंबर 2012

तंत्र ज़िंदगी के


मेरी व्यथा, मात्र वेदना नहीं है
सत्य यह कि, कहीं चेतना नहीं है
संघर्ष के जहां में, बस कमान लिए  
लक्ष्य की प्रतीति, पर भेदना नहीं है

तंत्र ज़िंदगी के सब, स्वतंत्र लगे
हम क्या लगे कि, बस यंत्र लगे
मंत्र कोई अपना असर भूल जाये
नियंत्रण कहीं और देखना कहीं है

क्षुब्ध है वही, जो यहाँ प्रबुद्ध है
गुप्त है वही यहाँ, लगे जो सुबुद्ध है
परत दर परत, उखड़ रही हैं सलवटें
एक सहमे को पकड़, कहें यही है

आपका व्यक्तित्व हमेशा है रुपहला
दृष्टि जो देखे उधर तो नज़र चला
एक आकर्षण है पर कई दुमछला
निर्णय तो कई पर योजना नहीं है।     



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

नारी


जीवन, जगत, जश्न भरी किलकारी

संभव वहीं जहां पुलकित है नारी

व्योम सी विशालता धारा सा सहन
सूरी सी प्रखरता चन्दा सी शीतल न्यारी
सृष्टि की रचयिता समाज की सशक्तता
प्रखरता, प्रांजलता,प्रस्फुटन की क्यारी

एक गहन वृक्ष है और सघन छांव
संरक्षण, सुरक्षा, संरक्षा, सुधि सारी
परिवार, समाज और देश देखे एकटक
जीत का प्रयास करे विजय की तैयारी

धन्य है समाज पाकर यह कोमलता
सौम्य, शांत, सहृदय, सुगम सुकुमारी
पर प्रचंड अति विहंग, दबंगता से दबंग
विविधता विस्तार कर रचे नए फुलवारी।    

   



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 23 दिसंबर 2012

सुनिए यह पुकार


आर्य भूमि का क्यों भूले सदाचार
कुंठित कायरता और बलात्कार
इंडिया गेट पर आक्रोशित युवा वर्ग
लड़कियों ने दिखलाया शक्ति व प्रतिकार

दर्द लिए हमदर्द मौसम बड़ा सर्द
मशाल सा प्रज्वलित अपना अधिकार
लाठी चार्ज, आँसू गैस से दमन क्यों
प्रजातन्त्र देश है सुनिए यह पुकार

बस के नीचे लेट कर लड़कियों का विरोध
साहस भी है और वेदना लिए धिक्कार
एक महान कार्य यह युवा सब तैयार
देश हमारा भी है दमन होगा बेकार

इस धरा की है स्वर्णिम कहानी गूँजती
राजधानी में उठी फिर वही हुंकार
दिग–दिगंत में युवा भारत की गूंज
इस विरोध को सब करते हैं स्वीकार।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
 अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
 दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

आप अधर हो आप सफर हो

शब्दों की पुड़िया में एहसासों की मिठाई
जब मिलती दिल खिलता आसमान अंगनायी
इस धरती पर कितने हैं खुशियाँ देने वाले
ऐसे इन्सानों को शत-शत है बधाई

शब्दों में जब दिल मुस्काकर मिलते हैं
नयन भींग जाते और मिल जाती नयी रुबाई
कितना सुंदर जीवन है अच्छे लोगों संग
बड़े नसीब से मिलती है पुलकित सी तरुणाई

काश करीब होते तो भर लेती यह बाहें
दो पलकों की छांह में खिलती एक अरुणाई
बातों के पुष्पों में मिलती नयी सुगंध
भावों की कश्ती में चाहत होती मदमायी

दिल में आप बसे हो अनुपम खिले-खिले हो
मेरी धड़कन मेरी तड़पन आपको भूल ना पायी
आप अधर हो आप सफर हो आप ही मेरी तृष्णा 
आप से मिलकर मेरी अभिलाषाएँ हैं भरमायी।




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 29 अगस्त 2012

अनहद अद्भुत


अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

वलय भावनाओं की मरीचिका बन
दहन को शमित कर सघन बन
मन के सीपी का, मोती सोता है
सानिध्य में, सुगंध नयी बोता है

अल्प नहीं, पूर्ण नहीं बल्कि अविराम
राधा के कृष्ण जैसे सीता के राम
स्पंदित, आनंदित आह्लादित सोता है
लगन में मन मगन, ऐसे ही होता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है

व्योम सा बाहुपाश और विश्वास लिए
चाँद, सूरज, सितारों का उच्छ्वास लिए
धरा को विस्मित कर राग पिरोता है
गुंजित सरगम में फिर डुबोता है

पुष्प या वृक्ष समझूँ या कहूँ वाटिका
बावरी विह्वल हो या कठोर साधिका
नित अनंत सृजन, अंत ना होता है
ऐसा सानिध्य कभी जीवन ना खोता है

अनहद अद्भुत अकस्मात होता है
तुम हो पास तो सबकुछ होता है


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

आप से प्यार ना हुआ है

आप से प्यार ना हुआ है 
चुपके से एहसासों ने छुआ है 
सोचिये समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईये 


प्यार होता तो होती एक पुकार
मेरे एहसासों का आप हैं आधार 
दिग-दिगंत अपरिमित अनंत 
अगणित अद्भुदता आप दर्शाईए


सोचिए समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईए


सृष्टि को समझने की बड़ी आस है
इस रहस्य का राज़ आपके पास है 
व्योम की सुरभि, श्याम को झुकाईए
निरख रही पलकों को तो सजाईए


सोचिए समझिए ना सकुचाईए
सावनी घटा सी बरस जाईए


प्यार हो जाता लघु आपके समक्ष 
एहसासों के बन जाते कई कक्ष 
खंड-खंड जीवन को ना लुढ़काईए
पूर्णता पुरोधा बने गुर तो सिखलाईए 


आप से प्यार ना हुआ है 
चुपके से एहसासों ने छुआ है 
सोचिए समझिए ना सकुचाईए 
सावनी घटा सी बरस जाईए




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 22 जून 2012

स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं


स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं
बातें इरादों में दब जाती हैं
अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी
चाहत संपूर्णता में कब आती है

चुग रहे हैं हम चाहत की नमी
यह नमी भी कहाँ अब्र लाती है
सब्र से अब प्यार मिले ना मिले
ज़िंदगी सोच यही हकलाती है

इतने अरमान कि सब बेईमान लगें
एहसान में भी स्वार्थ संगी-साथी है
दिल की तड़प, हृदय की पुकार  
आज के वक़्त को ना भाती है

प्यार के गीत लिखो प्यार डूबा जाय
इंसानियत निगाहों को ना समझ पाती है
फ़ेस बूक, ट्वीटर,एसएमएस की गलियाँ  
प्यार को तोड़ती, भरमाती हैं।



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 13 जून 2012

श्याम घटा की रागिनी


कब सुन्दर लग जाता कोई
कब दिल को छू जाता है
एक पल का केवल मिलना
लगता जन्मों का नाता है

कहते हैं कि दृष्टि हो सुन्दर
सब सुन्दर लग जाता है
यदि ऐसा कहना सच है तो
दिल को हर क्यों ना भाता है

दिनों साथ रहता संग कोई
प्रीति अधजगी रहती सोई
दिल दृष्टि ना अकुलाता है
उठती कोई ना जिज्ञासा है

आप मधुभरी चाँदनी जैसी
श्याम घटा की रागिनी जैसी
ह्रदय प्यार यह छलकाता है
दिल से दिल का यह नाता है

कैसी प्रतीक्षा कैसा यह अनमन
छोड़िये दिल दिमाग की अनबन
दिल की चाहत को चुकाना है
बस प्यार से उन्हें बतलाना है.  





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 12 जून 2012

बरखा (बाल गीत)


बरखा रानी बूँद भर पानी
भर देती प्रकृति में रवानी
कोयल कूके,पत्ते सब गायें
धरा को मानो मिली जवानी

बादल नभ में दौड़े धायें
मेढक गली-गली टर्राएँ
चारों तरफ पानी ही पानी
बरखा बरसे लगे सयानी

पक्षी दुबके देख ठिकाना
हरियाली का गूंजे गाना
बरखा की चलती मनमानी
चिड़िया ढूंढे दाना-पानी

काले-काले घने बादल आये
बिजली चमके और डराए
चले सन-सन हवा सयानी
खिडकी भीतर आये पानी

बरखा है तो है जिंदगानी
मौसम भी लगता गुण ज्ञानी
रिमझिम-रिमझिम का संगीत
बरखा की है यही कहानी.   





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 8 जून 2012

किसी उम्मीद में


किसी उम्मीद में शब् भर रहा, जलता दिया 
भोर की किरणों ने, आकर जो हंगामा किया 
तपिश से भर गया एहसास, एक खुशबू लिए
सुबह की लालिमा ने, ओ़स को जी भर पिया

यह क्यों होता है कैसे, लगे मौसम हो जैसे 
अभी बदली,अभी धूप, लुकाछिपी सी झलकियाँ 
इक आभा को लिए, शब् भर खिले चन्दा 
ना जाने क्यों छुपा देती हैं, हरजाई बदलियाँ 

तड़प संग आती है तरस, अकुलाई प्यासी सी
हसरतें चाहत की कटि पर, उठाये गगरियाँ 
अपने पनघट की तलाश में, जाए गुजर जीवन
हौसले टूटते ना हो भले, चहुँ ओर लाचारियाँ 

कैसा मोबाइल, कैसा स्कायपे, तकनीक का बंजर 
मरीचिका हैं घटाती ,ना तिल भर भी दूरियां 
छिटक चिनगारी सी, धू -धू लगाती आग यह 
मुबारक उनको यह, गजेट जिनकी यह कमजोरियां 

दिल अब भी दिल से मिलता है, तनहाईयों में 
सदा आती है जाती है, मिलती देती बधाइयाँ 
प्यार मोहताज़ ना रहा, कभी किसी सहारे का 
ठुमक उठता है जिस्म, सुन दिलों की शहनाईयां.   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 28 मई 2012

उम्मीद के जलते दिए


अब मेरी उम्मीद के जलते दिए
बोलकर मुझसे यह चल दिए
और ना प्रतीक्षा अब हो पाएगी
जिंदगी भ्रष्टाचार में समा जायेगी  

हर तरफ अवसर के झमेले हैं
हाँथ कंधे पर अजीब यह रेले हैं
घात और प्रतिघात बात बनाएगी
उम्मीद की लौ जल ना पाएगी

कर्म यदि प्रधान है तो विवश क्यों
भाग्य यदि विधान है तो तमस क्यों
टोलियाँ नयी बोलियां सत्य को झुटलायेंगी
न्याय धर्म परे कर बिगुल नया बजायेंगी

उम्मीद के दिए को यह जरुरी है
सत्य रहे मंद ऐसी क्या मज़बूरी है
बातियों को कर ऊँची लौ को बढ़ाएगी
यह विचार कर हुंकार भीत को ढहाएगी  





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

कैसा यह संसार है


आज पलटकर जीवन ने, दिया मुझे धिक्कार है
भारत भूमि भयभीत है, कितना भ्रष्टाचार है

जीवन के हर पग पर, पक रहा निरंतर निठुर
सत्कर्मों की सादगी, सजल, अचल, बेकार है

हर विरोध के स्वर को, लें दबोच पल भर में  
निचुड़-निचुड़ कर निचुड़े, कहें यही व्यवहार है

हो विनीत सह लेने की, आदत या मजबूरी है
सहनशक्ति सह लेती सब, ना कोई तकरार है

सारे रिश्ते रिसते खिसकें, गतिशील मझधार है
और किनारे टूटें-फूटें, नावों का व्यापार है

सूखी बाती दीपक थाती, निराधार आकार है
एकजुट हो ना पाएँ, कैसा यह संसार है।     



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

आज तमस में

आज तमस में फिर सुगंधित अमराई है 
सितारों ने जमघट आज फिर लगाई है 
चाँदनी ने हौले से जो छूआ चौखट 
आँगन तब से सिमटी, लजाई है 

झूम रही शाखें, पत्तियाँ करें बातें 
झींगुर झनक उठे, चाँद से दमक उठे 
हवाओं की ठंडक में निशा लिपट धाई है
आँगन के कोनों से गीत दी सुनाई है 

कहने को रात है पर प्रखर संवाद है 
मन बना लेखनी भाव लगे दावात है 
एक ऋचा पूर्णता को पृष्ठ-पृष्ठ तराई है 
अद्भुत अपूर्व असर आस की छजनाई है

आहट भी शोर करे निशा में भोर करे 
आँगन में चाँदनी आज ना शोर करे 
पौ फटने से पूर्व पौ की रहनुमाई है 
सांखल ना बोल उठे रामा दुहाई है।       

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

शब्द जब भावनाओं में ढलता है

 
शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है

जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है

शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है

हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग 
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीत अपूर्व

 
फिर हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ
नव सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया
अभिनव रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार
फिर चाहत ने राहों से प्रीतजनक तकरार किया

लगन लगी की हो रही चारों ओर बतकही
प्रीत की रीत यह बेढंगी सबने तो स्वीकार किया
अलख जगी तो लगी समाधि समर्पण की
दिल ने जुड़कर पल-पल को जीवन का त्योहार किया

दुनिया की अनदेखी करने का न मिला संस्कार
दूरी रख कर चाहत ने जीने का इकरार किया
वैसे भी सब मिलता नहीं जो चाहे दिल
दर्द-ए-दिल की चिंगारी में हवन बारम्बार हुआ

आखिर वक़्त संवारा आया हट गया साया
दुनिया ने इस श्रुति का आखिर पुकार किया
सच्चाई को जीत अपूर्व मिलती है ज़रूर
मिलती है मंज़िल अगर कोई ना गुमराह किया।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.