गीत लिखो कोई भाव सरणी बहे
मन की अदाओं को वैतरणी मिले
यह क्या कि तर्क से जिंदगी कस रहे
धड़कनों से राग कोई वरणी मिले
अतुकांत लिखने में फिसलने का डर
तर्कों से इंसानियत के पिघलने का डर
गीत एक तरन्नुम हम_तुम का सिलसिले
नाजुक खयालों में फूलों के नव काफिले
एक प्रश्न करती है फिर प्रश्न नए भरती
अतुकांत रचनाएं भी गीतों से संवरती
विवाद नहीं मनोभावों में अंदाज खिलमिले
गीत अब मिलते कहां अतुकान्त में गिले।
धीरेन्द्र सिंह