आ समंदर बाजुओं में, व्योम ओर धाएं
छल-कपट मेघ करे, व्योम को नहलाएं
तृषित वहीं है व्योम, छल का है क्षोभ
साथ चलना उन्मत्त उड़ना, मेघ का लोभ
सागर में मेघ को, पुनः सकल मिलाएं
छल-कपट मेघ करे, व्योम को नहलाएं
धीर है, गंभीर है, विश्वास भरा तीर है
दृष्टि थम जाए जहां, ऐसा वह प्राचीर है
बदलियों की चंचलता, आसमान भरमाए
छल-कपट मेघ करे, व्योम को नहलाएं
सूर्य की तपिश में व्योम की कशिश
वाष्प से बदली, व्योम में ही रचित
व्योम ने तराशा उसे, बिन बोले बरस जाए
छल-कपट मेघ करे, व्योम को नहलाएं
मेघ, बदली, बादल एक, हैं श्वेत-श्यामल
जब धरा की प्रीत जागे, गरजें-बरसे पागल
ठगा हतप्रभ व्योम का दग्ध मन कुम्हलाए
छल-कपट मेघ करे, व्योम को नहलाएं।
धीरेन्द्र सिंह
04.04.2024
21.14