सांखल बजती रही भ्रम हवा का हुआ
कल्पनाओं के सृजन की है यही कहानी
डूब अपने में किल्लोल की कमनीयता लिए
रसमयी फुहार चलती और कहीं जिंदगानी
हर नए झोंके में नवगीत लिए थाप है
एक नए बंदिश ने छेड़ी अपनी मनमानी
एक नए आकाश में कंदील नया जला
भावनाएं खिल उठीं कल्पनाएँ ले नादानी
निखर उठे नाज़-ओ-अदा ताप बिसर
खुसुर-फुसुर बनने लगी नयी कहानी
रचयिता की चल पड़ी अंगुलियाँ लिखने नया
कल्पनाएं निखर गयीं और राह अनजानी
प्राप्ति की संभावनाएं साज़ दिल की बनी
व्याप्ति की आकांक्षाएं लगे दिलबर जानी
बांटने का सुख कोई इन दीवानों से सीखे
यथार्थ की खोह में ढूँढते आँखों का पानी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.