दिल, दाग, दरिया दुबकते नहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं
प्रयासों से हरदम प्रगति नहीं होती
पहर दो पहर में उन्नति कहीं होती
ना जाने कब होता समझते नहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं
ना जाने कब कैसे उभरती मोहब्बत
दिल से दिल की अनजानी रहमत
अगर लाख चाहें यूं मिलते नहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं
अर्चना से अर्जित है यही क्या सृजित
हृदय कामनाओं में बसा कौन तृषित
समझने की चेष्टा, समझते कहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं
गरीबी, विवशता, लाचारी सब हैं शोषण
प्रणय में भी मिलता कहां सबको पोषण
हमें मत संभालो, हम लुढ़कते नहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं।
धीरेन्द्र सिंह
22.04.2024
10.45