सोमवार, 7 अप्रैल 2025

चाह

 अब भी तो बरसती हैं वैसी ही बदलियां

अब भी रहे हैं भींग पर वह बात नहीं

मनोभाव अब भी चाहे वही “अठखेलियाँ”

बदन की साध कहे, अब वह चाह कहीं


बूंदों में है फुहार ना बदलती हैं व्यवहार

सोंधी महकती मिट्टी, मेघ की छांह वही

एक सिहरन बदन बोलती थी पल-पल में

मन निरंतर बोल रहा, नेह की आह नहीं


न बदला मौसम न बदली पनपती युक्तियां

फिर क्या है बदला, किसी को ज्ञात नहीं

चाह की जेठ में तड़पती लगी हृदय धरा

मेघ लगे रहे रिझा, बूंदों की सौगात नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

07.04.2025

19.48



शनिवार, 5 अप्रैल 2025

काव्य

 अधिकांश, काव्य शब्दों में समझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं झुलसते हैं


लगता है प्रतीक, बिम्ब धुंध हो गए

भाव काव्य के कैसे अब कुंद हो गए

शब्द को पकड़ लोग क्यों सुलगते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं झुलसते है 


काव्य लेखन भ्रमित या काव्य समझ

काव्य बेलन सहित या भाव हैं उलझ

शब्द-शब्द काव्य अर्थ क्यों समझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं सुलगते हैं


भावनाएं भर-भर शब्द चयन होते हैं

कामनाएं, कल्पनाएं काव्य नयन होते हैं

काव्य को संपूर्णता से न सुलझते हैं

काव्यांश भावनाओं के यूं सुलगते हैं।


धीरेन्द्र सिंह

05.04.2025

23.38

पुणे।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

हिंदी समूह

 हिंदी समूह से जुड़ना

मेरा भाषा कर्तव्य है

तू बता समूह सफल

साहित्य क्या महत्व है?


कितने समूह छोड़ दिया

जो कहते भव्य हैं

कुछ ने मुझे निकाला

सोच बेबाक तथ्य है


सदस्य संख्या की भूख

साहित्य बुझा घनत्व है

बेतरतीब बढ़ रहा लेखन

रचना यही तत्व है


कुछ आते समय काटने

समूह टाइमपास भव्य है

कोई नहीं सचेतक वहां

कहते समूह सभ्य है।


धीरेन्द्र सिंह

08.16

05.04.2025

चैत्र नवरात्रि

 चैत्र नवरात्रि

जुड़े धर्मयात्री

कर्म आराधना

दुर्गा सर्वदात्री


व्रत है साध्य

लक्ष्य जगदात्री

आदिशक्ति माँ

सिद्ध हो नवरात्रि


पीड़ाएं वहन

क्रीड़ाएं दात्री

पीड़ा का बोझ

मैं जगयात्री


शौर्य दे शक्ति

तौर सर्वधात्री

हृदय लौ लपक

शुभ नवरात्रि🙏


धीरेन्द्र सिंह

04.04.2025

20.14



मॉडरेशन

 साहित्य और संस्कृति का हो निज आचमन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


समूह का आधार होगा, चयन मॉडरेटर का

समूह संस्थापक भी हैं, एडमिन साकार सा

साहित्य मर्म की संवेदनाओं का हो गमन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


हल्के-फुल्के मजाक दो-चार पंक्ति काव्य

ऐसे समूह में मॉडरेशन चुनौती न संभाव्य

विभिन्न हिंदी विधा हो तो चुनौतियां सघन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन


आवश्यक नहीं हिंदी पीएचडी हो हिंदी ज्ञाता

कई पुस्तकें हों प्रकाशित हिंदी की जिज्ञासा

मगन, मुग्ध, मौलिक हिंदी के प्रति नयन

व्यक्ति वही करे रचनाओं का नित मॉडरेशन।


धीरेन्द्र सिंह

04.04.2025

15.45

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

नग्नता

 वस्त्र की दगाबाजी

कहां से सीखा मानव

कब कहा प्रकृति ने

ढंक लो तन कपड़ों से,

सामाजिकता और सभ्यता का दर्जी

सिले जा रहा कपड़े

मानवता उतनी ही गति से

होती जा रही नग्न,

क्या मिला 

ढंककर तन,


धरती, व्योम पहाड़, जंगल

जल, अग्नि, वायु सब हैं नग्न,

जंगल में कैसे रह लेते हैं

पशु, पक्षी वस्त्रहीन

नहीं बहती जंगल में

कामुकता और अश्लीलता की बयार,

क्या मनुष्य ने

चयन कर वस्त्र

किया निर्मित हथियार ?


नग्न जीना नहीं है

असभ्यता या कामुकता

बल्कि यह 

स्वयं का परिचय,

स्वयं पर विश्वास,

शौर्य की सांस, 

शालीनता का उजास है,

नग्न कर देना

आज भी सशक्त हथियार है

मानवता

वस्त्र में गिरफ्तार है।


धीरेन्द्र सिंह

01.04.2025

16.49