किसी सड़क पर रोज आप निकलती होंगी
किसी तरह ट्रैफिक लड़खड़ाती चलती होगी
आपको मालूम नहीं आपकी हर अदाएं
हवाएं छूकर हर शख्स दिल धड़कती होंगी
आप मासूम हैं आपको मालूम भी नहीं
नज़र एक बार देख कर मचलती होंगी
सौम्य, शालीन अब मिलते ही कहाँ हैं
आहें तड़पती आप पर ही ढलती होंगी
एक उम्र जीने का हुनर आपने बांटा
एक अदा महफिलों सी ठहरती होगी
हर नज़र यूं भी आप तक न पहुंचे
संवेदनाएं जीवित वही लहरती होंगी
सौंदर्य उम्र के खूंटे पर, बंधा कब है
जिंदगी प्यार में यूं ही उभरती होगी
आपसे प्यार हो चुका कब से, उम्दा
आपको मालूम भी नहीं, डरती होंगी।
धीरेन्द्र सिंह
17.05.2024
17.21