तुम्हें अपनी बातें कहने लगे
तो
तुमको लगे, मशवरा हो गया
अपने कथन में वचन सब समेटे
पुतला खड़ा, दशहरा हो गया
जहां से बही थी नदिया वो निर्झर
मंदिर बना फरफरा हो गया
जहां हमकदम संग झूमा गगन था
वहां धरती मिल मक़बरा हो गया
बहती हवा संग मिलो तुम कभी तो
खुश्बू बिखर, नभभरा हो गया
गया क्या अक्सर कहता है जीवन
छुवन एक थी, दर्दभरा हो
गया।
धीरेन्द्र सिंह
02.12.2023
09.58