शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

छुवन

 

तुम्हें अपनी बातें कहने लगे तो

तुमको लगे, मशवरा हो गया

 

अपने कथन में वचन सब समेटे

पुतला खड़ा, दशहरा हो गया

 

जहां से बही थी नदिया वो निर्झर

मंदिर बना फरफरा हो गया

 

जहां हमकदम संग झूमा गगन था

वहां धरती मिल मक़बरा हो गया

 

बहती हवा संग मिलो तुम कभी तो

खुश्बू बिखर, नभभरा हो गया

 

गया क्या अक्सर कहता है जीवन

छुवन एक थी, दर्दभरा हो गया।

 


धीरेन्द्र सिंह

02.12.2023

09.58

किसान

 प्रस्ताव सविनय निवेदित

आगत तो होता अतिथि


कौन कलेवा आज बंधा

कौन हल से है नधा

कौन धूप से व्यथित

आगत तो होता अतिथि


संग कलेवा आया संदेसा

मचान को धूप ने सेंका

रजाई तकिया संबंधित

आगत तो होता अतिथि


पम्पिंग सेट की जलधार

रहँट कुएं से गयी उतार

दुआर रहा न आनंदित

आगत तो होता अतिथि


बहुत कठिन है किसानी

श्रम के बूंदों की कहानी

फसल चाह किसान क्रन्दित

आगत तो होता अतिथि।


धीरेन्द्र सिंह


01.12.2023

15.32