बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

बचना क्या

 बांध मन यूं रचना क्या

खाक होने से बचना क्या


लौ बढ़ी लेकर नव उजाला

दीप्ति में कितना रचि डाला

कोई सोचे यूं जपना क्या

खाक होने से बचना क्या


सर्जन की गति है अविरामी

सहज, सकल गति है ज्ञानी

कोई सोचे यूं ढहना क्या

खाक होने से बचना क्या


रीत जाता निर्माण समय संग

मिटना सत्य पर अथक मृदंग

कोई सोचे यूं कहना क्या

खाक होने से बचना क्या।


धीरेन्द्र सिंह

09.10.2024

13.11