सत्य को पसंद कर्म की अर्चना है
स्वयं की अभिव्यक्ति ही सर्जना है
आत्मद्वंद्व प्रत्येक प्राणी स्वभाव भी
सहजता क्रिया में आत्म विवेचना है
अभिव्यक्तियों की हैं विभिन्न कलाएं
प्रत्येक कला प्रथम आत्म वंदना है
अभिव्यक्ति को बांध जीता है जो भी
क्या करे मनुष्य वह सही संग ना है
खुलने के लिए खिलना प्रथम चरण
खिल ना सके मन जीवन व्यंजना है
मुरझाए पुष्प लिए झूमती टहनियां हैं
सब जीते हैं कहते जीवन तंग ना है
एक दृष्टि से सृष्टि को न देखा जा सके
विभिन्नता ही भव्य जीवन अंगना है
स्वयं को निहारना मुग्ध मन से जो हो
समझिए जीवन घेरे सूर्यरश्मि कंगना है।
धीरेन्द्र सिंह
17.07.2025
10.39