तुम आयी कि, आया चांद
आतुर छूने को, खिड़की लांघ
उचट गयी लखि यह तरुणाई
मध्य रात्रि, दिल की यह बांग
अर्धचंद्र का यह निर्मित तंत्र
संयंत्र हृदय का लेता बांध
तुमको हर्षित हो, उपमा प्रदत्त
शीतकाल में, उघड़ा चले माघ
निदिया भाग गई, लगे रूठ
जैसे तुम रूठती, प्रीत नाद
चांद की यह बरजोरी कैसी
रूठे युगल को, देता गहि कांध
चुम्बन शुभ रात्रि का लेकर
छुवन, दहन, सिहरन को फांद
चांद पहरुआ खिड़की झांके
रात्रि प्रहर अभिनव निनाद।
धीरेन्द्र सिंह
27.11.2021
रात्रि 01.30