मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

मूल्य

 आइए संयुक्त मिल रचना करें

साहित्य में मिल कुछ गहना धरें

आप भी बुनकर तो बेमिसाल हैं

युग्म से रच स्वर्ण अंगना भरें


दस ग्राम स्वर्ण मूल्य एक लाख

खरीदें या बेचें चंचल चाह आंख

और कितने शब्द थकते दुःख हरे

सुनहरा हो रसभरा यूं रचना करें


मूल्य सबका बढ़ रहा, यहां स्थिरता

क्या कहीं कमजोर पड़ती, निर्भरता

हाँथ मेरा बढ़ चुका संग उमंग गहें

हम भी मूल्यवान हों लयबद्ध बहें


समय सबको जोड़ता है तोड़ता है

सजग जो रहें समय भी जोड़ता है

स्वर्णमुद्रा सा सब शब्द दीप्तिभरे

चिंतन, मनन करें संग रंग सुनहरे।


धीरेन्द्र सिंह

16.04.2025

12.22

पूर्णता

 हम नयन के कोर में

देख लेते हैं

झिलमिलाता कहन

करता आलोकित गगन

शांत, सौम्य तकती रहती

आकांक्षाएं

रंगते, गढ़ते अपना चमन,


हल्की उजियारी सी आभा

और कोमल कुहासा

उड़ रहे डैने पसारे

डाल का तो हो इशारा,

लचकती है या रही झूम

कुहासा बाधित करे

कोशिशें अपने में मगन,


मौसम बदलता भाव है

कल्पना की छांव है

मन की एक लंबी सड़क

दौड़ती, मुड़ती, उबड़-खाबड़

सब नयन है देख रहा

और कुहासा

ढाँप लेता दृश्य स्पष्ट

पर रुकी ना दृष्टि

है शोधती अभिनव डाल

मन से मन का हालचाल

पूर्णता के लिए करता चयन।


धीरेन्द्र सिंह

15.04.2025

18.02