मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

तुम्हारे हाँ का संदेशा

मेरी मजबूरी है कि तुमसे बड़ी दूरी है
सोचता हूँ कि दिल कैसे करीब आयें
मुझे तुम याद करो इश्क़ आबाद करो
और हम चाहतों का नित सलीब पाएँ 

किसी से जुड़ जाना ज़िंदगी का तराना
मन यह मस्ताना भी नया नसीब पाये
कितने हैं रंग, अनेकों हैं तरंग-उमंग
आशिक़ी हो दबंग अनुभव अजीब पाएँ

तुम में चतुराई है गजब की गहराई है
तुमको सोचूँ तो मन में अदब आए
तुमसे हो बातें तो निखरे इंद्रधनुष
मिले संगत तो इश्क़ शबद गाए

हे प्रिये मेरा तो यही नज़राना है 
इश्क़ ही तो सभी मज़हब समझाए
ज़िंदगी चूम रही पल दर पल तुमको
तुम्हारे हाँ का संदेशा जाने कब आए.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.