भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
चाहत की धीमी आंच पर
इंसान भी सिजता है,
तथ्य है सत्य है
आजीवन न डिगता है,
चाहत कब झुलसाती है
नैपथ्य बस सिंकता है,
कब बोलोगी इसी का इन्तजार
मन रोज तुमको ही लिखता है।
धीरेन्द्र सिंह