अब तुम
तुम ना रही
सिंचित हो चुकी
मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
स्पर्श
मिल सहर्ष
आनंद का ले स्वर्ग
उड़ रहा मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
चांद ठिठका
मध्य रात्रि
नयन गगन
सृष्टि न्यास्ति
अगवानी पुलके
रह-रह मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
दिवस है आज
मदनोत्सव
कहो न आज कुछ
मेरी मनभव
प्यार ही साँच है
घुमड़े है
मुझमें
कहो क्या अनुभूति है।
धीरेन्द्र सिंह
तुम ना रही
सिंचित हो चुकी
मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
स्पर्श
मिल सहर्ष
आनंद का ले स्वर्ग
उड़ रहा मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
चांद ठिठका
मध्य रात्रि
नयन गगन
सृष्टि न्यास्ति
अगवानी पुलके
रह-रह मुझमें
कहो क्या अनुभूति है
दिवस है आज
मदनोत्सव
कहो न आज कुछ
मेरी मनभव
प्यार ही साँच है
घुमड़े है
मुझमें
कहो क्या अनुभूति है।
धीरेन्द्र सिंह