शनिवार, 27 जुलाई 2024

वह

 वह बिन लाईक, टिप्पणी मुझको पढ़ती है

बोल या अबोल सोच खुद में सिहरती है

मेरी रचना बूझ जाती बिनबोली सब बात

ऐसे नित मेरी रचनाओं में वह संवरती है


स्वाभिमान अभिमान बनाते सब संगी साथी

आसमान अपना समझ भ्रमित विचरती है

संवेदनाएं उसकी मेरी आहट की देती सूचना

हो जाती असहाय जब अपनों में बिहँसती है


कल्पनाएं भावपूर्ण हो तो बिखेरती बिजलियाँ

व्योम विद्युत सी आजकल मुझपर गिरती है

जिंदगी कब सीधी राह मिली किसी को

जिंदगी की है आदत प्रायः वह मचलती है।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

19.40

कजरी गूंजे

 आप मुझे निहार जब करें श्रृंगार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


मौसम मन को यहां-वहां दौड़ाए

लगे बिहँसि मौसम आपमें इतराए

नयन-नयन के बीच जारी भाव कटार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


कितना परवश कर जाता है मौसम

कभी पसीना मस्तक, फूल पड़े शबनम

ना रही शिकायत ना कोई तकरार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार


हवा सुगंधित ऐसे जैसे सुरभित केश

मन बौराया मौसम या कारण विशेष

पुष्पवाटिका हृदय, है प्रतीक्षित द्वार

कजरी गूंजे कान, हृदय सावनी सार।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

19.11


मानवता लय

 प्रदूषण कम हुआ वनस्पतियों की सुगंध

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


शिव की आराधना में लपकती कामनाएं

सृष्टि में सफल रहे विभिन्न अर्चनाएं

शिवत्व का महत्व कांवड़िए जैसे पतंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


श्रध्दा में शक्ति है परालौकिक युक्ति है

साधना हो सुनियोजित मिलती मुक्ति है

कौन किसका साधक मन जैसे विहंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग


मानव मन में कई मार्ग चलें कांवड़िए

शिवमंदिर, शिवधाम में विश्वास मढ़िए

विश्व कल्याण हो मानवता लय एकसंग

सावन में मन जैसे भावनाओं का मृदंग।


धीरेन्द्र सिंह

27.07.2024

18.55