कारवां के बदलते अंदाज़ हैं
कैसे कहें नेतृत्व जाबांज है
सूख रही बगीचे की क्यारियां
फिर भी टहनियों पर नाज़ है
सिर्फ कागजों की दौड़ चले
फोटो भी छुपाए कई राज हैं
एक-दूजे की प्रशंसा ही बानगी
कार्यालयों में यही रिवाज है
कारवां से अलग चलना नहीं
नयापन अक्सर लगे बांझ है
सांप सीढ़ी का खेल, खेल रहे
बहुत कठिन मौलिक आवाज है।
धीरेन्द्र सिंह
कैसे कहें नेतृत्व जाबांज है
सूख रही बगीचे की क्यारियां
फिर भी टहनियों पर नाज़ है
सिर्फ कागजों की दौड़ चले
फोटो भी छुपाए कई राज हैं
एक-दूजे की प्रशंसा ही बानगी
कार्यालयों में यही रिवाज है
कारवां से अलग चलना नहीं
नयापन अक्सर लगे बांझ है
सांप सीढ़ी का खेल, खेल रहे
बहुत कठिन मौलिक आवाज है।
धीरेन्द्र सिंह