आज तमस में फिर सुगंधित अमराई है
सितारों ने जमघट आज फिर लगाई है
चाँदनी ने हौले से जो छूआ चौखट
आँगन तब से सिमटी, लजाई है
झूम रही शाखें, पत्तियाँ करें बातें
झींगुर झनक उठे, चाँद से दमक उठे
हवाओं की ठंडक में निशा लिपट धाई है
आँगन के कोनों से गीत दी सुनाई है
कहने को रात है पर प्रखर संवाद है
मन बना लेखनी भाव लगे दावात है
एक ऋचा पूर्णता को पृष्ठ-पृष्ठ तराई है
अद्भुत अपूर्व असर आस की छजनाई है
आहट भी शोर करे निशा में भोर करे
आँगन में चाँदनी आज ना शोर करे
पौ फटने से पूर्व पौ की रहनुमाई है
सांखल ना बोल उठे रामा दुहाई है।
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.