बहुत हो अच्छी तुम अच्छी लगती मुझे
ब्लॉग पर जाकर रोज निहारता हूँ तुम्हें
ना कहना गलती है या अपराध मेरा
खींच ले जाते हैं वहां कुछ बावरे लम्हें
जितना पढ़ा है तुम्हें मानो पढ़ लिया दिल
ब्लॉग तो बोलता है दिल के खालिस नगमें
धडकनें धडकनों से मिलकर बन जाती धुन
गुनगुना उठते होंठ मेरे पाकर मीठे सदमें
दिल चाहे बोल दे तुमको, शालीनता रोके
डर लगे न जाने क्या क्या उठे, गगन में
ब्लाक कर दोगी तो बंद हो जाएगा दिल
अभी तो कोंपले ना उठी हमारे मन में
है उम्मीद यह इजहार असर लाएगा नया
आ जाउंगा मैं भी तुम्हारे ब्लॉग की हद में
वर्चुअल दुनिया में ऐसी ही होती मुलाकातें
ना जाने तुम कहाँ मैं भी अपनी सरहद में.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.