कविता भी शराब होती है
रंग लिए
ढंग लिए
उमंग की तरंग लिए
व्यक्ति में घुल खोती है
कविता भी शराब होती है
इसमें कवि "फ्लेवर" है
लेखन का "टेक्सचर" है
कड़वाहट और मिठास है
मनभावों को खुद में डुबोती है
कविता भी शराब होती है
आरम्भ की पंक्तियों में "वाह"
मध्य भाग में मन चाहे "छाहँ"
अंत में लगे पकड़े कोई "बाहं"
इस तरह अंकुर उन्माद बोती है
कविता भी शराब होती है
जुड़े यदि गायन बन जाती "बार"
नृत्य यदि जुड़े तो महफ़िल खुमार
शब्द भावों से हृदय में उठे झंकार
कविता-शराब में दांत कटी रोटी है
कविता भी शराब होती है।
धीरेन्द्र सिंह
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रंग लिए
ढंग लिए
उमंग की तरंग लिए
व्यक्ति में घुल खोती है
कविता भी शराब होती है
इसमें कवि "फ्लेवर" है
लेखन का "टेक्सचर" है
कड़वाहट और मिठास है
मनभावों को खुद में डुबोती है
कविता भी शराब होती है
आरम्भ की पंक्तियों में "वाह"
मध्य भाग में मन चाहे "छाहँ"
अंत में लगे पकड़े कोई "बाहं"
इस तरह अंकुर उन्माद बोती है
कविता भी शराब होती है
जुड़े यदि गायन बन जाती "बार"
नृत्य यदि जुड़े तो महफ़िल खुमार
शब्द भावों से हृदय में उठे झंकार
कविता-शराब में दांत कटी रोटी है
कविता भी शराब होती है।
धीरेन्द्र सिंह
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