शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

छुवन तुम्हारी

 छुवन तुम्हारी चमत्कारी एहसास है

सूखते गले में कुछ बूंदें तो टपकाईये

प्यास लिए आस वह लम्हा लगे खास

पास और पास एक विश्वास तो बनाइये


प्यार उन्माद में कभी आप तो तुम कहूँ

बहूँ अनियंत्रित भाव लहरें ना छलकाईये

मेरी मंत्रमुग्धता सुप्तता आभासित करे

जागृत जीवंत मनन आराध्य तो बन जाईये


कोमल काया को बंधनी स्पर्श दे उत्कर्ष

सहर्ष बिन सशर्त प्रेम सप्तक तो जगाइए

मेरे शब्दों में अर्चना है प्रीत धुन लिए नई

अपने स्वरों में ढाल कभी मुझे तो गुनगुनाइये।

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

दशहरा


दशानन का शमन

वमन हुआ वह कहकहा

यही है दशहरा


विभीषण कहें या खुफिया

विशाल शक्ति ढहाढहा

यही है दशहरा


स्वयं में है रावण

या परिवेश दे रावण, भरभरा

यही है दशहरा


अपनों में भरे रावण

धनु राम का हुंकार भरा

यही है दशहरा


एक संकल्प ले शपथ

सोच से परे दांव फरफरा

यही है दशहरा


जीवित रावण बहुरूपिया

राम तीर अग्नि सुनहरा

यही है दशहरा।


धीरेन्द्र सिंह



मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

भींगे ही रहें

 प्रियतम प्यारे

आप ऐसे ही भींगे रहें


भावनाओं के वलय

बूंद बन तन-मन बहें,

अर्चनाएं सघन मन

प्रभु कृपा से कहें,

मन एकात्म यूँ डिगे रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें;


ज्ञात भी अज्ञात भी

मनभाव तथ्य यही गहें,

सर्जनाएँ प्रीत की हम

शब्दों में गहि-गहि कहें,

प्यार की राह में यूँ टिके रहें

आप ऐसे ही भींगे रहें।


धीरेन्द्र सिंह



सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

तरंग

 तुम तर्क की कसौटी पर

हवा दिशा बहती

अद्भुत तरंग हो,

मैं

भावनाओं की गहनता में

स्पंदनों की तलहटी तलाशता

प्रयासरत

एक भंवर हूँ।


धीरेन्द्र सिंह