देहरी पहुंचा उनके, देने कदम आभार
समझ बैठी वह, आया मांगने है प्यार
ठहर गया वह कुछ भी ना बोला
नहीं सहज माहौल प्रज्ञा ने तौला
फिर बोली क्यों आए, खुले ना द्वार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार
कैसे बोलें क्यों बोलें देहरी की वह बात
नीचे भागी-दौड़ी आयी थी ले जज्बात
उसी समन्वय का करना था श्रृंगार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार
उसकी निश्चल मुद्रा देख, बोली भयभीत
जाते हैं या दरवाजे को, बंद करूँ भींच
वह मन ही मन बोला, देहरी तेरा उपकार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार
क्या कभी याचना से प्राप्त हुआ है प्यार
क्या कभी प्यार भी रहा बिन तकरार
वह गया था देहरी को करने नमस्कार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार।
धीरेन्द्र सिंह
02.04.2024
13.17