मन है बावरा, मन उद्दंड है
तन वशीभूत, उन्मादी प्रचंड है
प्रत्येक मन में अर्जित संस्कार
प्रत्येक जन में सर्जित संसार
सबकी दुनिया अपना प्रबंध है
तन वशीभूत, उन्मादी प्रचंड है
शक्ति का वर्चस्व ना संविधान
खुदगर्जियाँ तो संविधान लें तान
भ्रष्टाचार भी आक्रामक महंत है
तन वशीभूत, उन्मादी प्रचंड है
वर्तमान सहेजना भी है दायित्व
व्यक्ति संभाले सामाजिक व्यक्तित्व
अपराध घटित होने पर दंड है
तन वशीभूत, उन्मादी प्रचंड है।
धीरेन्द्र सिंह
27.09.2024
07.56