मन संवेदनाओं का ताल है
आपका ही तो यह कमाल है
लौकिक जगत की अलौकिकता
दृश्यपटल संकुचित मलाल है
कभी टीवी, दैनिक पत्र, मोनाईल
स्त्रोत यही प्रदाता हालचाल है
स्वविश्लेषण, अवलोकन लुप्तता
सत्यता निष्ठुरता से बेहाल है
कुछ न बोलें कुछ न लिखें लोग
मौन रहना प्रगति का ढाल है
व्यक्तिगत प्रगति का मकड़जाल
अब कहाँ नवगीत नव ताल है
इस अव्यवस्था की लंबी अवस्था
बाहुबल प्रचंड और दिव्य भाल है
सत्यता डिगती नहीं न झुकी कहीं
संक्रमण का दौर है परिवर्तनीय काल है।
धीरेन्द्र सिंह
आपका ही तो यह कमाल है
लौकिक जगत की अलौकिकता
दृश्यपटल संकुचित मलाल है
कभी टीवी, दैनिक पत्र, मोनाईल
स्त्रोत यही प्रदाता हालचाल है
स्वविश्लेषण, अवलोकन लुप्तता
सत्यता निष्ठुरता से बेहाल है
कुछ न बोलें कुछ न लिखें लोग
मौन रहना प्रगति का ढाल है
व्यक्तिगत प्रगति का मकड़जाल
अब कहाँ नवगीत नव ताल है
इस अव्यवस्था की लंबी अवस्था
बाहुबल प्रचंड और दिव्य भाल है
सत्यता डिगती नहीं न झुकी कहीं
संक्रमण का दौर है परिवर्तनीय काल है।
धीरेन्द्र सिंह